लंकड़वीर महाराज रामपुर बुशैहर के (सोनितपुर) सराहन दौर के लिए हुए रवाना ।

 लीला चन्द जोशी,निरमंड

(अखंड भारत दर्पण)

देव भूमि हिमाचल प्रदेश के धार्मिक स्थल हमारी संस्कृति के प्रतीक है।  यहां अनेकों  प्राचीन मंदिर और कलात्मक, स्थापत्य, वास्तुकला, और मूर्तिकला ,की दृष्टि से हमेशा से, न केवल श्रद्धालु



ओं बल्कि पर्यटकों, खोजकर्ताओं, और कलाप्रेमियों, के आकर्षण का केंद्र है।अनेकों धार्मिक स्थानों व शक्तिपीठ विद्यमान है जिसमें देव भूमि हिमाचल के लोगों की गहरी आस्था रहती है । जहां देवी देवताओं पर गहरी आस्था रखी जाती है इसलिए हिमाचल देव भूमि से पूरे भारतवर्ष में विख्यात है। जिला  कुल्लू के आउटर सिराज की कोठी ब्रह्मगढ़  के श्री खंड महदेव के चारों में बसे देवता लांकड वीर महाराज शुक्रवार प्रातः 6:00 बजे  अपने मंदिर ठारला से अपने मूल स्थान  बुशैहर रियासत की राजधानी (सोनितपुर )वर्तमान में सराहन के नाम से जाना जाता है । जो  52 शक्तिपीठों में से एक  माना जाता है।  जिसके लिए अपने मूल स्थान के लिए अपने कार करिंदो के साथ रवाना हुए हैं। देवता  लांकड़वीर महाराज के (चिड़ी रथ ) बनने के बाद अपने मूल स्थान सराहन के लिए पहली बार प्रतिष्ठा ( गाडू ढाने) का कार्यक्रम है । देवता लंकड वीर कमेटी के कारदार नूप राम ने बताया कि देवता लंकड़ वीर महाराज अपने रथ बनने के बाद कोठी ब्रह्मगढ़ के सभी धार्मिक स्थानों का दौरा करने के बाद आखिर में मां भीमाकली के  निमंत्रण पर अपने मूल स्थान सराहन बुशैहर के लिए रवाना हुए हैं । उन्होंने बताया कि वैसे तो मां भीमकाली और लंकड वीर  का प्राचीन मूल स्थान चीनी रियासत की पुरानी राजधानी बसपा वैली (सांगला) के कामरु किला में  स्थित है । लेकिन बाद में बुशैहर रियासत के तत्कालीन राजा पदम सिंह ने मां भीमाकली और माता के द्वारपाल लांकड़ वीर महाराज को कामरू किला से (सोनितपुर)  सराहन में किले, व मंदिर का निर्माण करके यहां स्थापित किया था। उन्होंने बताया कि देवता लांकड़ वीर महाराज का यह तीन दिवसीय दौरा है। अपने दौरे के बाद देवता  लंकड़ वीर को मां भीमाकली से शक्ति व आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद अपने मंदिर ठारला के लिए वापसी होगी। देव यात्रा में क्षेत्र के लगभग  150 लोग  में 

यात्रा निकले हैं।

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