महेंद्र सिंह।
अखण्ड भारत दर्पण।
हिमाचल प्रदेश भवन एवं सडक निर्माण मजदूर यूनियन ( सम्बन्धित सीटू ), ब्लाक कमेटी निरमण्ड ने सोमवार को केंद्र व प्रदेश सरकार की मजदूर विरोधी, किसान, विरोधी, जन विरोधी, कॉरपोरेट समर्थक, राष्ट्र विरोधी विनाशकारी नीतियों के विरोध में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशनों ने मिलकर 28, 29 मार्च 2022 को देशव्यापी हड़ताल के विषय को लेकर किसान मजदूर भवन निरमण्ड में बैठक का आयोजन किया ।
इस बैठक को सम्बोधित करते हुए हिमाचल प्रदेश भवन एवं सडक निर्माण मजदूर यूनियन ( सम्बन्धित सीटू ), ब्लाक कमेटी निरमण्ड महासचिव अमित, सनी और परस राम ने कहा कि देश की सरकार की नीतियों के कारण तमाम लोगों के जीवन, आजीविका और देश की अर्थव्यवस्था को संकट में डाल दिया है। अब संघर्ष न केवल लोगों के अधिकारों, आजीविका व जीवन बचाने के लिए है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था,सम्पूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था और पूरे समाज को उस आपदा और विनाश से बचाने के लिए है । देश के अंदर हालात बदतर होते जा रहे हैं। मौजूदा समय में रोजगार और आजीविका के अवसरों में अत्यधिक गिरावट के कारण बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है जिसने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में न केवल मेहनतकश लोगों को बल्कि पूरे युवा, छात्र वर्ग के लिए निराशा और हताशा की स्थिति पैदा कर दी है। अधिकांश लोगों की आय मानव अस्तित्व हेतु आवश्यक न्यूनतम स्तर से नीचे पंहुच गई है । अप्रैल 2021में कोविड महामारी की दूसरी लहर के दो -तीन महीनों के दौरान 23 करोड श्रमिकों की आय प्रचलित वैधानिक न्यूनतम वेतन स्तर से जो पहले से ही मानव अस्तित्व के मानक से नीचे है से बहुत नीचे पहुंच गई ।जिससे की मेहनतकश लोगों के बीच भूखमरी खतरनाक रूप से बढ़ गई है। जिससे भारत 107 देशों में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 101 स्थान पर आ गया है और हमारा देश पड़ोसी देशों से बहुत पीछे हो गया है। देश की सरकार के द्वारा संविधान, जनतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर हमला किया जा रहा है पिछले सौ साल के अंतराल में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी 4 श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना , 3 किसान विरोधी काले कानूनों को पारित करना और किसानों के विरोध के चलते वापिस लेना , बिजली संशोधन कानून 2021 इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार मजदूरों के 44 कानूनों को खत्म करने, सार्वजनिक क्षेत्र को बेचने के खिलाफ कार्य कर रही है। सरकार के इन निर्णयों से बहुत अधिक संख्या में मजदूर व किसान सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने के आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स, ठेका, दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है। केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए 15वें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हज़ार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है। दूसरी तरफ आज मजदूरों को नियमित रोज़गार से वंचित करके फिक्स टर्म रोज़गार की ओर धकेला जा रहा है। वर्ष 2003 के बाद नौकरी में लगे कर्मचारियों का नई पेंशन नीति के माध्यम से शोषण किया जा रहा है।
उन्होंने ने कहा है कि केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गई है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले मुफ्त में करने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के तहत मोदी सरकार बैंक, बीमा, रेलवे, सड़क, बीएसएनएल ,एयरपोर्टों, स्टेडियम, बिजली , बंदरगाहों, ट्रांसपोर्ट, गैस पाइप लाइन, बिजली, सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन, सड़कों, स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। इससे केवल पूंजीपतियों, उद्योगपतियों व कॉरपोरेट घरानों को फायदा होने वाला है व गरीब और ज़्यादा गरीब होगा।
खुद को गरीबों की सरकार कहने वाली मोदी सरकार गरीबों को खत्म करने पर आमदा है। देश में महंगाई पर काबू न करने से आम लोगों को आर्थिक तौर पर कमज़ोर किया गया है। देश का सबसे गरीब तबका व सबसे ज़्यादा महिलाएं सामाजिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली मनरेगा व स्कीम वर्करज़ जैसी कल्याणकारी योजनाओं में कार्य करते हैं। आवश्यक वस्तुओं के दाम में लगातार बढ़ोतरी करके और ज्यादा हमला करके ऐसी स्थिति में मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। मनरेगा कानून में बजट की कमी के कारण लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है और जिनको मनरेगा में काम मिल रहा है उन्हें समय पर उसका वेतन नहीं मिल रहा हैं। जबकि देश में कोरोना महामारी के कारण उद्योग बन्दी व अन्य क्षेत्रों में काम बन्दी होने से मजदूरों का गांव की ओर रिवर्स माइग्रेशन हुआ है व बेरोजगार जनता के लिए मनरेगा रोज़गार का सबसे बड़ा साधन बनकर उभरा है। मनरेगा में बजट कम होने से समय पर रोजगार न मिलने से देश में बेरोज़गारी और बढ़ेगी।
मग़र सरकार बेशर्मी से देश मे मजदूरों व किसानों को दबाने में लगी है।इस महामारी का फायदा उठाकर मजदूरों किसानों से जुड़े कानूनों को बदल दिया है। जो लोग आज सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं उन्हें देश द्रोह का क़ानून लगा कर सलाखों के पीछे डाला जा रहा है। लोकतंत्र की हत्या की जा रही है पूरी तानाशाही को लागू किया जा रहा है। हिमाचल सरकार ने बीते कुछ समय पहले काम के घंटे 8 से 12 करने की अधिसूचना जारी की है जिससे मजदूरों को गुलाम बनाने का मसौदा तैयार किया जा रहा हैं जिसको सीटू कतई बर्दाश्त नही कर सकता ।
बैठक में सरकार की जनविरोधी नीतियों व मजदूरों की मांगों को लेकर गांव स्तर पर प्रचार अभियान तेज किया जाएगा । मजदूरों की मांगों को लेकर जिसमें सभी का इलाज मुफ्त में किया जाए, महंगाई पर तुरंत रोक लगाई जाए, सबको मुफ्त में वेक्सीन लगाई जाए, सबको महामारी चलने तक 10 किलो प्रति व्यक्ति मुफ्त राशन दिया जाए, प्रत्येक परिवार को 7500 रु प्रतिमाह आर्थिक मदद दी जाए, मनरेगा वर्कर को 700 रुपये दिहाड़ी व 200 दिन का रोजगार दिया जाए, संयुक्त किसान मोर्चे के 6सूत्रीय मांगपत्र को स्वीकृति, 4 मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं व बिजली संशोधन विधेयक 2021 को निरस्त करना, निजीकरण पर रोक लगाना, न्यूनतम वेतन 26000 करना की मांग को लेकर केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशनों के साथ मिलकर 28 मार्च 2022 को हिमाचल प्रदेश भवन एवं सडक निर्माण मजदूर यूनियन (सम्बन्धित सीटू), ब्लाक कमेटी निरमण्ड , निरमण्ड में हड़ताल करेगी।
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