महेंद्र सिंह।
अखण्ड भारत दर्पण।
हिमाचल प्रदेश भवन एवं सड़क निर्माण मजदूर यूनियन ब्लाक यूनिट निरमण्ड (संबंधित सीटू), हिमाचल किसान सभा ब्लॉक इकाई निरमण्ड और मिड डे मील वर्कर यूनियन निरमण्ड ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशन के आवाहन पर निरमण्ड में मनरेगा मजदूरों, मिड डे मील वर्कर व आउटसोर्स कर्मचारियों की मांगों और मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ सोमवार को रैली निकली।
रैली को संबोधित करते हुए हिमाचल प्रदेश भवन एवं सड़क निर्माण मजदूर यूनियन ब्लॉक यूनिट महासचिव अमित, अध्यक्ष सनी राणा और हिमाचल किसान सभा जिला शिमला महासचिव देवकीनंद, निरमण्ड ब्लॉक अध्यक्ष पूर्ण ठाकुर, महासचिव जगदीश, परस राम ने कहा कि देश की मौजूदा सरकार ने देश की जनता के जीवन को संकट में डाल दिया है। अब संघर्ष न केवल लोगों के अधिकारों व आजीविका व जीवन बचाने के लिए है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और सम्पूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था और पूरे समाज को उस आपदा और विनाश से बचाने के लिए है। देश के अंदर हालात बदतर होते जा रहे हैं। मौजूदा समय में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। जिसने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में न केवल मेहनतकश लोगों को बल्कि पूरे युवा, छात्र वर्ग के लिए निराशा की स्थिति पैदा कर दी है। मेहनतकश लोगों के बीच भूखमरी खतरनाक रूप से बढ़ गई है। जिससे भारत 116 देशों में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 101 स्थान पर आ गया है और हमारा देश पड़ोसी देशों से बहुत पीछे हो गया है।
देश की सरकार के द्वारा संविधान, जनतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर हमला किया जा रहा है पिछले सौ साल के अंतराल में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी 4 श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना, 3 किसान विरोधी काले कानूनों को पारित करना और किसानों के विरोध के चलते वापिस लेना, बिजली संशोधन कानून 2021 इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार मजदूरों के 44 कानूनों को खत्म करने, सार्वजनिक क्षेत्र को बेचने का कार्य कर रही है। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने के आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है। सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए 15वें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें 26000 रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है।
दूसरी तरफ आज मजदूरों को नियमित रोज़गार से वंचित करके फिक्स टर्म रोज़गार की ओर धकेला जा रहा है। वर्ष 2003 के बाद नौकरी में लगे कर्मचारियों का नई पेंशन नीति के माध्यम से शोषण किया जा रहा है।
उन्होंने कहा है कि केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गई है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले मुफ्त में देने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के तहत मोदी सरकार बैंक, बीमा, रेलवे, सड़क, बीएसएनएल ,एयरपोर्टों, स्टेडियम, बिजली , बंदरगाहों, ट्रांसपोर्ट, गैस पाइप लाइन, बिजली, सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन, सड़कों, स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। इससे केवल पूंजीपतियों, उद्योगपतियों व कॉरपोरेट घरानों को फायदा होने वाला है व इससे गरीब और ज़्यादा गरीब होगा।
खुद को गरीबों की सरकार कहने वाली मोदी सरकार ने देश की जनता को गरीबी में धकेल लिया है। देश में महंगाई पर काबू न करने से आम लोगों को आर्थिक तौर पर कमज़ोर किया गया है। आवश्यक वस्तुओं के दाम में लगातार बढ़ोतरी करके एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जिससे आम जन को मुश्किल से अपना जीवन यापन करना पड़ रहा हैं।
मनरेगा कानून में बजट की कमी के कारण लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है और जिनको मनरेगा में काम मिल रहा है उन्हें समय पर उसका वेतन नहीं मिल रहा हैं। निरमण्ड में एक मस्टरोल में 14 दिन की जगह सिर्फ 12 दिन का काम दिया जा रहा है और सिर्फ 10% परिवार ऐसे हैं जिनको 100 दिन का रोजगार मिला है। जबकि देश में कोरोना महामारी के कारण उद्योग बन्दी व अन्य क्षेत्रों में काम बन्दी होने से मजदूरों का गांव की ओर रिवर्स माइग्रेशन हुआ है व बेरोजगार जनता के लिए मनरेगा रोज़गार का सबसे बड़ा साधन बनकर उभरा है। मनरेगा में बजट कम होने से समय पर रोजगार न मिलने से देश में बेरोज़गारी और बढ़ेगी। मग़र सरकार बेशर्मी से देश मे मजदूरों व किसानों को दबाने में लगी है
मजदूर नेताओं ने सरकार को चेतावनी दी है कि महंगाई पर तुरंत रोक लगाई जाए, सबको मुफ्त में वैक्सीन लगाई जाए, सबको महामारी चलने तक 10 किलो प्रति व्यक्ति मुफ्त राशन दिया जाए, प्रत्येक परिवार को 7500 रु प्रतिमाह आर्थिक मदद दी जाए, मनरेगा वर्कर को 350 रुपये दिहाड़ी व 200 दिन का रोजगार दिया जाए, 4 मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं व बिजली संशोधन विधेयक 2021 को निरस्त किया जाए,कृषि कानूनों के निरस्त होने के बाद के संयुक्त किसान मोर्चा के 6 सूत्रीय मांगपत्र को स्वीकार करो। औधोगिक मजदूरों को न्यूनतम वेतन अन्य मजदूरों से 40 प्रतिशत अधिक व आवास सुविधा दी जाए, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और सुधारने के लिए अमीरों पर सम्पति कर लगाकर संसाधनों को जुटाया जाए। इन मुख्य मांगों को लेकर केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशनों के साथ मिलकर 28 मार्च 2022 को देशव्यापी हड़ताल में सीटू से सम्बंधित सभी यूनियनों व हिमाचल किसान सभा ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया।
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