मिड डे मील वर्कर्स यूनियन (सीटू ) ब्लॉक कमेटी निरमण्ड ने किया बैठक का आयोजन।

महेंद्र,ब्यूरो निरमण्ड।
मिड डे मील वर्कर्स यूनियन सम्बंधित सीटू ब्लॉक कमेटी निरमण्ड में शनिवार को एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता यूनियन अध्यक्षा तिलका ठाकुर ने की। पीडब्ल्यूडी विश्राम गृह निरमण्ड में इस बैठक का आयोजन मिड डे मील वर्कर के लिए 25 बच्चों की शर्त को हटाने, 10 के बजाए 12 महीने का वेतन व वर्करों को न्यूनतम वेतन देने की मांग को लेकर संघर्ष करने के बारे में हुई।

इस बैठक को संबोधन करते हुए सीटू जिलाध्यक्ष कुलदीप सिंह, परस राम, यूनियन अध्यक्षा तिलका ठाकुर,महासचिव सत्या ने कहा कि देश की मोदी सरकार देश की उत्पादन करने वाली शक्तियों पर तीखे हमले जारी रखे हैं मजदूरों के श्रम कानूनों को खत्म किया जा रहा है। देश की सरकार की नवउदारवादी नीतियों के चलते देश की जनता का जीवन संकट में चला गया है। महंगाई लगातार बढ़ रही जिससे आम जनता का जीवन यापन करना मुश्किल हो गया है। बेरोजगारी ने पिछले 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। चारों तरफ निराशा और हताशा फैल गई है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार मिड डे मील मजदूरों को न्यूनतम वेतन न देकर व 45 श्रम सम्मेलन की शर्त के अनुसार जिसमें सरकार ने माना था कि योजना मजदूरों को मजदूर का दर्जा, सभी प्रकार की छुट्टियां , पेंशन, ग्रेच्युटी, स्वास्थ्य आदि की सुविधा दी जाएगी 2013 के बाद अभी तक लागू नहीं की। केंद्र में रही सरकारों ने 2009 के बाद 1 रुपये की बढ़ोतरी भी अभी तक नहीं की। बल्कि मोदी सरकार तो इस योजना को कॉरपोरेट दोस्तों के हवाले करना चाहती है। यही कारण है कि इस योजना में बजट के अंदर लगातार कटौती की जा रही है। मोदी सरकार मिड डे मील योजना का नाम बदलकर इसे खत्म करना चाहती है। योजना को ठेकेदारों को देने का प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार मिड डे मिल योजना में केंद्रीय रसोई घर व डीबीटी शुरू कर रही। केंद्र सरकार ने इस योजना का नाम बदल दिया है। स्कूलों में मिड डे मील के खाते बंद कर दिए गए हैं। केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति लेकर आई है, जिसके चलते बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूल बंद हो जाएंगे। यह सब करके भाजपा सरकार मिड डे मील वर्कर्स के रोजगार को खत्म करना चाहती है। जिसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा।

यूनियन ने कहा कि केंद्र सरकार मिड डे मील को मजदूर का दर्जा नहीं दे रही। राज्य में मिड डे मील वर्करों को 2600 रूपये मिलते है वह भी 3 महीने बाद मिल रहा है।इस महंगाई के दौर में यह मानदेय बहुत कम है। प्रदेश में कई स्कूल बंद कर दिए गए व वर्कर्स का रोजगार छीना जा रहा है। यही नहीं केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लेकर आई है जो गरीब बच्चों को सरकारी शिक्षा से बाहर धकेलेगा और वर्कर्स के रोजगार को छीनेगा। इसलिए सरकार इसे तुरंत रद्द करे । 

यूनियन ने सरकार से मांग की है कि मिड डे मिल वर्कर का न्यूनतम वेतन 10500 रुपये किया जाए, मिड डे मील मजदूरों को हिमाचल हाई कोर्ट के 31 अक्टूबर 2019 के निर्णय अनुसार 10 महीने के बजाए 12 महीने का वेतन दिया जाए, मिड डे मील मजदूर को सभी प्रकार की छुट्टियां दी जाए, मिड डे मील मजदूरों को हर महीने का वेतन दिया जाए ,राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 रद्द करे, स्कूल मर्ज होने या बंद होने की स्थिति में मिड डे मील कुक को प्राथमिकता के आधार पर अन्य सरकारी स्कूलों में समायोजित किया जाए।मिड डे मील योजना का किसी भी रूप में नीजिकरण न हो। केन्द्रीय रसोईघरों व योजना को ठेके पर देने पर रोक लगे,डीबीटी के जरिए मिड डे मील योजना को खत्म करने की कोशिश बन्द हो,12वीें कक्षा तक के सभी बच्चों (प्रवासी मजदूरों के बच्चों को भी) को मिड डे मील योजना के दायरे में लाया जाए। इसके लिए अधिक पोषित सामग्री तैयार करके वितरित हो। स्वयं सहायता समूह की बाध्यता बंद हो। दोपहर के भोजन के अलावा स्कूलों में नाश्ते का भी प्रावधान किया जाए,नई शिक्षा नीति लागू न की जाए। इसमें कम संख्या वाले स्कूलों को बंद करने का प्रावधान है। जो बच्चों की संख्या को स्कूलों में घटाएगा व मिड डे मील वर्कर्स के रोजगार को भी खत्म करेगा।मिड डे मील वर्कर्स को स्कूल का चौथे दर्जे का कर्मचारी घोषित किया जाए।बैठक में निर्णय लिया गया कि यदि यूनियन की मांगे नहीं मानी गई तो प्रदेश सरकार के खिलाफ यूनियन प्रदर्शन करेगी। इस बैठक में सत्या, चिंता देवी, राधा देवी, सुरमा देवी, उषा देवी, भादर सिंह शामिल रहे।

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