हिमाचल प्रदेश मिड डे मील वर्कर्स यूनियन सम्बंधित सीटू का राज्य सम्मेलन किसान-मजदूर भवन चिटकारा पार्क कैथू शिमला में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में प्रदेशभर से 150 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में आगामी तीन वर्षों के लिए 27 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया। जिसमें इंद्र सिंह को अध्यक्ष,हिमी देवी को महासचिव,कौशल्या देवी को कोषाध्यक्ष,गुरदास वर्मा,नीरथ सिंह,महेंद्र को उपाध्यक्ष,इंद्र सिंह, बलबिंद्र कौर,मदन लाल को सचिव,शांति देवी,पुष्पा,रमा,बिमला, सतीश,अलया देवी,कांता महंत,रीता देवी,होशयारा राम,विनीत कुमार,सुदेश कुमार,सरिता देवी,रीता को कमेटी सदस्य का चुना गया।
सम्मेलन का उद्घाटन सीटू राज्य उपाध्यक्ष जगत राम व समापन सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने किया। उन्होंने कहा कि देश की मोदी सरकार मजदूर वर्ग पर तीखे हमले जारी रखे हुए है। मजदूरों के श्रम कानूनों को खत्म किया जा रहा है। देश की सरकार की नवउदारवादी नीतियों के चलते देश की जनता का जीवन संकट में पड़ गया है। महँगाई लगातार बढ़ रही है जिससे आम जनता का जीवन यापन करना मुश्किल हो गया है। बेरोजगारी ने पिछले 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। केंद्र सरकार 45वें श्रम सम्मेलन की शर्त के अनुसार योजना मजदूरों को मजदूर का दर्जा देने, पेंशन, ग्रेच्युटी, स्वास्थ्य आदि सुविधा को लागू नहीं कर रही है। केंद्र में रही सरकारों ने वर्ष 2009 के बाद मिड डे मील कर्मियों के वेतन में एक रुपये की बढ़ोतरी भी अभी तक नहीं की है बल्कि मोदी सरकार तो इस योजना को कॉरपोरेट कम्पनियों के हवाले करना चाहती है। यही कारण है कि इस योजना के बजट में लगातार कटौती की जा रही है। मोदी सरकार मिड डे मील योजना का नाम बदलकर प्रधानमंत्री पोषण योजना करके इसे खत्म करना चाहती है। सरकार मिड डे मिल योजना में केंद्रीय रसोई घर व डीबीटी शुरू कर रही है। स्कूलों में मिड डे मील के खाते बंद कर दिए गए हैं। केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति लेकर आई है, जिसके चलते बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूल बंद हो जाएंगे। यह सब करके भाजपा सरकार मिड डे मील वर्कर्स के रोजगार को खत्म करना चाहती है जिसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार मिड डे मिल वर्करों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है व मिड डे मील वर्करज़ को मजदूर दर्जा सरकार नहीं दे रही है। राज्य में मिड डे मील वर्करों को 2600 रूपये मिलते हैं,वह भी समय पर नहीं मिल रहा है। इस महँगाई के दौर में यह मानदेय बहुत कम है। प्रदेश में कई स्कूल बंद कर दिए गए हैं व वर्कर्स का रोजगार छीना जा रहा है। यही नहीं केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लेकर आई है जो गरीब बच्चों को सरकारी शिक्षा से बाहर धकेलेगा और वर्कर्स के रोजगार को छीनेगा। इसलिए सरकार इसे तुरंत रद्द करे ।
नव निर्वाचित अध्यक्ष इंद्र सिंह,महासचिव हिमी देवी व कोषाध्यक्ष कौशल्या देवी ने सरकार से मांग की है कि मिड डे मिल वर्कर का न्यूनतम वेतन 10500 रुपये किया जाए। मिड डे मील मजदूरों को हिमाचल हाई कोर्ट के 31 अक्टूबर 2019 के निर्णय अनुसार दस महीने के बजाए बारह महीने का वेतन दिया जाए। चार महीने का बकाया वेतन को तुरंत दिया जाए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 रद्द की जाए। स्कूल मर्ज होने या बंद होने की स्थिति में मिड डे मील वर्करों को प्राथमिकता के आधार पर अन्य सरकारी स्कूलों में समायोजित किया जाए। मिड डे मील योजना का किसी भी रूप में नीजिकरण न किया जाए। केन्द्रीय रसोईघरों व योजना को ठेके पर देने पर रोक लगाई जाए। डीबीटी के जरिए मिड डे मील योजना को खत्म करने की कोशिश बन्द की जाए व 12वीें कक्षा तक के सभी बच्चों (प्रवासी मजदूरों के बच्चों को भी) को मिड डे मील योजना के दायरे में लाया जाए। इसके लिए अधिक पोषित सामग्री तैयार करके वितरित की जाए। स्वयं सहायता समूह की बाध्यता बंद की जाए। दोपहर के भोजन के अलावा स्कूलो में नाश्ते का भी प्रावधान किया जाए। नई शिक्षा नीति लागू न की जाए। इसमें कम संख्या वाले स्कूलों को बंद करने का प्रावधान किया जाए। मिड डे मील वर्कर्स को कर्मचारी घोषित किया जाए।
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