एसएफआई हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई द्वारा पिंक पेटल पर किया गया धरना प्रदर्शन ।

एसएफआई हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई द्वारा पिंक पेटल पर धरना प्रदर्शन किया गया । इस धरना प्रदर्शन का मुख्य कारण छात्रों को उनके जनवादी अधिकारों से वंचित करना , विश्वविद्यालय और प्रदेश के महाविद्यालयों में छात्रों के जनवादी अधिकार एससीए चुनाव पर बैन लगाना,छात्र संघ चुनाव  बहाल न करना और भी बहुत समस्याओं का सामना करना छात्रों को करना पड़ रहा है कोविड-19 के चलते 2020 से ही एकेडमिक सेशन पहले से ही देरी से चल रहा है ।एक और प्रशासन को इसकी चिंता होनी चाहिए थी लेकिन प्रशासन कहीं और ही मग्न  है । प्रशासन को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारा एकेडमिक सेशन देरी से चल रहा है इसकी बजाय विश्वविद्यालय प्रशासन इस जद्दोजहद में लगा है कि किस तरह से विश्वविद्यालय में बीजेपी का चुनाव प्रचार किया जा सके। इसके चलते प्रशासन सुध लेने के लिए तैयार नहीं है कि विश्वविद्यालय में कक्षाएं नियमित रूप से चल रही है या नहीं। इसके बजाय प्रशासन विश्वविद्यालय में तरह-तरह की गतिविधियां जो केवल बीजेपी के चुनाव प्रचार का माध्यम है को करने में लगा है जिससे विश्वविद्यालय के साधनों और विश्वविद्यालय सभागार का गलत इस्तेमाल हो रहा है ।दूसरा यदि हम हॉस्टल अलॉटमेंट की बात करें तो विश्वविद्यालय में कक्षाएं शुरू हुए लगभग एक से डेढ़ महीना हो गया है लेकिन फिर भी विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों को हॉस्टल प्रदान करने में नाकाम है और जो हॉस्टल अलॉट भी किए जा रहे हैं । वहां पर भी सिर्फ एक विशेष विचारधारा के लोगों को हॉस्टल में भरने के लिए जो विश्वविद्यालय का आम छात्र है उसे हॉस्टल के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा जब दिनांक 6अक्टूबर 2022 को विश्व विद्यालय की हॉस्टल एलॉटमेंट के लिए दूसरी सूची जारी की जाती है। वहां पर यह मामला सामने आया है ।
विश्वविद्यालय में हॉस्टल एलॉटमेंट में बहुत सी अनियमितताएं देखने को मिल रही है पापुलेशन स्टडीज इसका जीता जागता उदाहरण है यहां लिस्ट में एक विशेष विचार के व्यक्ति को हॉस्टल देने के लिए कम मेरिट होते हुए भी लिस्ट में उसका नाम शामिल किया गया है जबकि वहीं पर दूसरे छात्र की मेरिट उस व्यक्ति से ज्यादा है इसके बावजूद भी उसे हॉस्टल से वंचित रखा गया है ।यह केवल इस बार की ही नहीं बल्कि जब पहले भी हॉस्टल लिस्ट जारी की गई थी उसमें भी इस तरह की अनियमितताएं साफ देखने को मिली है ।यदि हम यू जी के रिजल्ट की बात करें तो मई महीने में यूजी के एग्जाम हो चुके हैं लेकिन अभी भी प्रशासन उन परीक्षाओं के परिणाम निकालने में नाकाम है। इसकी सबसे बड़ी वजह विश्वविद्यालय में गैर कर्मचारियों की नियमित भर्तियां न होना है एक और तो प्रशासन अपने लोगों को विश्वविद्यालय में दाखिल करने के लिए आउट सोर्स को तवज्जो दे रहा है । लेकिन दूसरी और विश्वविद्यालय में नियमित भर्तियों पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं इसका कारण यह भी है के प्रशासन अपने चहेतों को विश्वविद्यालय में भरने में मग्न है। विश्वविद्यालय परिसर सचिव सुरजीत ने इन सब दिक्कतों के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि जिस तरह से विश्वविद्यालय में ईलीगल रिक्रूटमेंट की जा रही है वह यदि इसी तरह जारी रही तो विश्वविद्यालय का रैंक जो दो सौ के पार हुआ है वह दूर दूर तक  नजर भी नहीं आएगा एनआईआरएफ की रिपोर्ट के अनुसार विश्वविद्यालय का रेंक इस बार 200 से नीचे खिसक गया है जिसका सबसे बड़ा कारण विश्वविद्यालय में डफर लोगों की प्रोफेसर,असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्तियां है यदि विश्व विद्यालय में 2020 के बाद जो भी नियुक्तियां की गई हैं उनकी बात की जाए तो सारी की सारी नियुक्तियां न्यायालय में चिन्हित है जोकि उस समय के वाईस चांसलर एवं अभी के बीजेपी सांसद सिकंदर कुमार द्वारा की गई थी। यदि अभी की बात की जाए तो यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है अभी भी विश्वविद्यालय के प्रोविजनल वाइस चांसलर और एडिशनल वाइस चांसलर द्वारा भी इसी तरह के कारनामों को अंजाम दिया जा रहा है। यहां पर यह बात सोचने योग्य है कि क्या एडिशनल वाइस चांसलर विश्वविद्यालय में नियुक्तियां कर सकता है या नहीं प्रोविजनल वाइस चांसलर और  एडिशनल वाइस चांसलर द्वारा न केवल यह नियुक्तियां की जा रही हैं बल्कि साथ साथ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की प्रमोशन के लिए इंटरव्यू जी करवाया जा रहे हैं जो कि सरासर गलत है जब तक विश्वविद्यालय में 2020 के बाद हुई नियुक्तियों सवालों के घेरे में है । कॉमरेड पवन द्वारा इन सब समस्याओं का जिम्मेदार एससीए चुनावों का न होने को ठहराया है। 2013 के बाद जबसे विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनावों पर प्रतिबंध लगाया गया है तब से विश्वविद्यालय में छात्रों के जनवादी अधिकारों पर भी प्रतिबंध लग गया है । जब भी विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा किसी भी तरह का तुगलकी फरमान जारी किया जाता था तो उसका सामना करने के लिए छात्रों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि अग्रिम पंक्ति में खड़े होते थे और विश्वविद्यालय में किसी भी धांधली को रोकने के लिए सबसे पहले पहल करते थे पर जब से छात्र संघ चुनावों पर प्रतिबंध लगाया गया है छात्रों से उनके जनवादी मंच को छीना गया है । तब से छात्र अपनी आवाज बुलंद करने में समर्थ नहीं है और इस प्रतिबंध के पीछे का सबसे बड़ा कारण यही है कि जब से विश्वविद्यालय का निर्माण हुआ है और जब से छात्र संघ चुनाव हो रहे हैं 1978 से लेकर 2013 तक एक अपवाद को छोड़ दिया जाए तो हमेशा ही छात्र संघ चुनावों मैं एसएफआई की जीत हुई है और जब भी प्रशासन द्वारा कोई भी गलत नीति लागू की जाती है तो एस एस आई द्वारा उसका पुरजोर विरोध किया जाता है अतः प्रशासन द्वारा जिस प्रकार से मनोनयन की प्रक्रिया इस्तेमाल करते हुए विश्वविद्यालय में छात्र संघ का निर्माण किया जा रहा है एसएफआई उसका पुरजोर विरोध करती है। प्रशासन द्वारा उच्च न्यायालय और लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का हवाला हर बार दिया जाता है लेकिन उसी लिंगदोह कमेटी में यह भी बड़े साफ साफ शब्दों में लिखा गया है कि यदि आप किसी भी विश्वविद्यालय में मनोनयन प्रक्रिया द्वारा छात्र संघ का गठन करते हैं तो आपको उसके 5 वर्ष बाद कैंपस में निर्वाचन प्रक्रिया के तहत ही छात्र संघ का निर्माण करना होगा ।अतः हम यहां से यह मांग करते हैं कि विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय के अंदर जल्द से जल्द छात्रों के जनवादी अधिकार बहाल करते हुए छात्र संघ चुनाव की बहाली की जाए यदि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उन सभी मांगों पर संज्ञान नहीं लिया गया तो एसएफआई आने वाले समय में प्रदेश भर के सभी छात्रों को लामबंद करेगी और इस गूंगे बहरे प्रशासन के खिलाफ एक उग्र आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेगी।

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