अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई द्वारा रविवार को रानी लक्ष्मीबाई जयंती व नारी शक्ति दिवस के उपलक्ष्य पर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कन्या छात्रावास में संगोष्ठी का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मेजर रितु कालरा एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ सूर्य रश्मि रावत उपस्थित रहे।
संगोष्ठी में उपस्थित छात्राओं को सम्बोधित करते हुए मेजर रितु कालरा ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई भारतवर्ष की प्रत्येक स्त्री के लिए शौर्य का प्रतीक है। महिलाएं शुरू से हर क्षेत्र में आगे रही हैं, चाहे रानी दुर्गावती हों या रानी लक्ष्मी बाई, उनकी वीरता का बखान मुश्किल है। रानी लक्ष्मीबाई से नौजवानों को वीरता, स्वदेश प्रेम और आत्म बलिदान की प्रेरणा मिलती है।उन्होने कहा कि स्त्री शक्ति हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है।
हालांकि पहले महिलाओं को सिर्फ गृहणी के रूप में देखा जाता था, लेकिन महिलाएं आज हर क्षेत्र में पुरुषों से न केवल कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, बल्कि उनसे आगे भी निकल रही हैं। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी वीरता से अंग्रेजों का जीना हराम कर दिया था। रानी लक्ष्मीबाई गजब की उत्साही एवं उनमें वीरों की भांति तेज था। लक्ष्मीबाई औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत के 1857 स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण शख्सियत हैं। जिन्होंने झांसी पर कब्जा करने का प्रयास कर रही ब्रिटिश सेना से बहादुरी से लड़ते हुए अपने प्राण का बलिदान कर दिया था।हमारे देश के लिए उनके साहस और महत्वपूर्ण योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। उनकी शौर्य गाथा हमेशा देशवासियों के लिए प्रेरणास्त्रोत रहेगी।
राष्ट्र निर्माण में नारी की भूमिका अहम
मेजर रितु ने कहा कि राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं की अहम भूमिका को कभी भी अनदेखा नहीं किया जा सकता । आजादी के समय से लेकर आज तक समाज व राष्ट्र के नव निर्माण में महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सक्रिय सहभागिता निभाते हुए खुद को साबित किया है।उन्होंने कहा कि गुजरते समय के साथ महिलाओं ने हर स्तर पर खुद को सबला के रूप में साबित किया है। समाज में सकारात्मक बदलाव और नई पीढ़ी को राष्ट्र व समाजसेवा के लिए संस्कारित करने में उनका योगदान सबसे ज्यादा है। देश में गुरु व मां का दर्जा एक जैसा है। वे दोनों ही एक बेहतर सभ्य व संस्कारित समाज के लिए संस्कारवान पीढ़ी को तैयार करते हैं।
विशिष्ट अतिथि डॉ सूर्या रश्मि रावत ने संगोष्ठी में मौजूद छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्र के निर्माण में स्त्रियों का सबसे बड़ा योगदान घर एवं परिवार को संभालने के रूप में हमेशा रहा हैं। किसी भी समाज में श्रम विभाजन के अंतर्गत घर एवं बच्चों को संभालना एक अत्यंत महत्वपूर्ण दायित्व हैं। अधिकांश स्त्रियाँ इस दायित्व का निर्वहन बखूबी कर रही हैं।घर को संभालने के लिए जिस कुशलता और दक्षता की आवश्यकता होती है उसका पुरुषों के पास सामान्यतया अभाव होता हैं। इसलिए स्त्रियां का शिक्षित होना अनिवार्य हैं | यदि स्त्री शिक्षित नहीं होगी तो आने वाली पीढियां अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकती। एक शिक्षित स्त्री पूरे परिवार को शिक्षित बना देती हैं। निश्चित रूप से नारी ने अनेक बाधाओं के बावजूद नई बुलंदियों को छुआ हैं और घर के अतिरिक्त बाहर भी स्वयं को सुद्रढ़ता से स्थापित किया हैं.लेकिन इन सबके बावजूद उसकी समस्याए अभी भी बनी हुई हैं। उन्होने अपनी सफलताओं के झंडे ऐसे गाड़े है कि पुरानी रूढ़िया हिल गई हैं। शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो,जो महिलाओ की भागीदारी से अछूता हो। उसकी स्थिति में आया अभूतपूर्व सुधार उसे हाशिये पर रखना असम्भव बना रही हैं। नारी के जुझारूपन का लोहा सबकों मानना पड़ रहा हैं।
कार्यक्रम के अंत में संगोष्ठी में मौजूद छात्राओं को संबोधित करते हुए जनजातीय छात्रा कार्य प्रमुख वैशाली नेगी ने कार्यक्रम में मौजूद सभी छात्राओं का धन्यवाद व्यक्त किया।
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