पेंशन खत्म करने का फैसला सामाजिक सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है। कर्मचारी अपने जीवन के उत्पादक और ऊर्जावान साल सरकार और राष्ट्र की सेवा में लगा देते हैं। सेवानिवृत होने के बाद जब उन्हें सबसे ज्यादा सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता होती है उस समय सरकार उनकी सेवा के बदले उन्हें बेसहारा छोड़ देती है। यह कर्मचारियों के साथ सरासर अन्याय है। जब एक विधायक या सांसद शपथ लेने के तुरन्त बाद पेंशन का हकदार हो सकता है तो 40 साल की नौकरी करने के बाद एक कर्मचारी क्यों नहीं हो सकता।
कसुम्पटी से सीपीआई(एम) के प्रत्याशी डॉ. कुलदीप सिंह तँवर ने कर्मचारियों के मुद्दे पर प्रैस वार्ता में कहा कि नवउदारवादी नीतियों के कारण सरकारें अपने सामाजिक दायित्व से पीछे हट रही हैं और सार्वजनिक क्षेत्रों को धीरे-धीरे खत्म करके निजीकरण के रास्ते पर तेजी से जा रही हैं।
डॉ. तँवर ने कहा कि 80-90 के दशक में जब वे कर्मचारियों और अधिकारियों के मुद्दे उठाते थे तो सरकारें कर्मचारी संगठनों की मांगों को ध्यान से सुनती थीं और उनका हल भी निकालती थीं। लेकिन आज सरकारें कर्मचारी संगठनों की बात तक सुनने को तैयार नहीं हैं। महीनों कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर अनशन पर बैठे रहते हैं लेकिन सरकारें उनकी बात सुनना तो दूर उल्टा उन्हें ताना देती हैं कि अगर पेंशन चाहिए तो वे भी चुनाव लड़े। उन्होंने कर्मचारी संगठनों से आह्वान किया कि वे मिलकर अपनी लड़ाई लड़ें। वह चाहे ओपीएस की लड़ाई हो या फिर आऊटसोर्स, अनुबन्ध, अंशकालिक, स्कीम वर्कर की लड़ाई हो। उन्होंने कहा कि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कोशिश की थी कि कर्मचारी और अधिकारी एक साथ न केवल अपनी लड़ाई लड़े बल्कि नीतिगत मुद्दों को भी उठाए।
डॉ. तँवर ने कहा कि उन्होंने अपनी मांगों के साथ-साथ फॉरेस्ट्री कमीशन की मांग की थी और खैर नीति को बदलने के लिए सरकार को मजबूर किया था।
माकपा प्रत्याशी ने कहा कि चुनावों में शराब के अलावा सिंथेटिक नशा भी ज़ोर पकड़ रहा है। यह बहुत ही चिंताजनक है। शिमला शहर से निकलकर अब आसपास के क्षेत्रों में फैल रहा है। हाल ही में नालदेहरा में चिट्टे का मामला पकड़े जाने से चिंता और बढ़ गई है। भविष्य में इसके गंभीर परिणाम होंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा कहती तो है कि नशे को रोकना है लेकिन इसके लिए प्रयास अपेक्षाकृत नहीं किए जा रहे।
वहीं कॉरपोरेट सेक्टर के पूर्व नेता गोविन्द चतरान्टा ने कहा पेंशन अंग्रेजों के वक्त भी मिलती थी लेकिन आज़ाद भारत और अपनी सरकार के समय इस सुविधा को बन्द करना खेदजनक है। चतरान्टा ने कहा कि पूंजीपतियों ने उस समय भी इसका विरोध किया था लेकिन आज तो अपनी ही चुनी हुई सरकारें कर्मचारियों की दुश्मन हो गई हैं। गोविन्द चतरान्टा ने कहा कि सरकार ने कर्मचारियों को पेंशन से ही वंचित नहीं रखा है बल्कि कर्मचारियों का हिस्सा भी स्टॉक मार्केट में लगाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि राजनैतिक दल चुनाव के समय कर्मचारियों से बड़े-बड़े वादे करते हैं लेकिन बाद में मुकर जाते हैं। कॉरपोरेट सेक्टर के साथ किए गए वायदे को भाजपा बार-बार तोड़ चुकी है।
कांग्रेस-भाजपा एक तरफ कर्मचारियों से वायदे करती है और दूसरी तरफ से उनके खिलाफ कोर्ट में लड़ती हैं।
गोविन्द चतरान्टा ने कहा कि सीपीआई(एम) के अलावा कोई दल ओपीएस और अन्य कर्मचारियों की मांगों के लिए नहीं लड़ सकता। इसका स्पष्ट उदाहरण विधायक राकेश सिंघा हैं जिन्होंने विधानसभा में हर वर्ग के मुद्दे उठाए। इसलिए इस बार जनता को राकेश सिंघा के साथ एक सशक्त टीम विधानसभा में भेजनी चाहिए।
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