सीटू जिला कमेटी शिमला की बैठक जिलाध्यक्ष कुलदीप डोगरा की अध्यक्षता में किसान मजदूर भवन चिटकारा पार्क शिमला में सम्पन्न हुई। बैठक में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा विशेष रूप से उपस्थित रहे। बैठक में निर्णय लिया गया कि मजदूरों की मांगों को लेकर शिमला जिला से सैकड़ों मजदूर 5 अप्रैल 2022 को दिल्ली के संसद मार्च में भाग लेंगे। बैठक में विजेंद्र मेहरा, कुलदीप डोगरा, अजय दुलटा, बालक राम, हिमी देवी, बिहारी सब्जी, रामप्रकाश, अमित, सुनील मेहता, नीलदत्त, रिंकू, कश्मीरी, रणजीत, भूप सिंह, वीरेंद्र, सीताराम, निशा, राजेश, नरेंद्र देष्टा, सुरेंद्र बिट्टू, दीवान, शांति, देवेंद्र, पूर्ण, किशोरी ढटवालिया, हरदयाल, कपिल आदि मौजूद रहे।
सीटू जिलाध्यक्ष कुलदीप डोगरा व महासचिव अजय दुलटा ने कहा कि केंद्र सरकार लगातार मजदूरों के कानूनों पर हमले कर रही है। इसी कड़ी में मोदी सरकार ने मजदूरों के 44श्रम कानूनों को खत्म करके चार लेबर कोड बनाने,सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश व निजीकरण के निर्णय लिए हैं। उन्होंने आउटसोर्स नीति बनाने,स्कीम वर्कज़ को नियमित कर्मचारी घोषित करने,मनरेगा मजदूरों के लिए 350 रुपये दिहाड़ी लागू करने आदि विषयों पर केंद्र व प्रदेश सरकार की मज़दूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में कार्य कर रही है व मजदूर विरोधी निर्णय ले रही है। पिछले सौ सालों में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता,मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है। यह साबित हो गया है कि यह सरकार मजदूर,कर्मचारी व जनता विरोधी है व लगातार गरीब व मध्यम वर्ग के खिलाफ कार्य कर रही है। सरकार की पूँजीपतिपरस्त नीतियों से देश की नब्बे प्रतिशत आम जनता सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने का आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है। आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साज़िश की जा रही है। उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स,ठेका,दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है। केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हज़ार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है।
उन्होंने केंद्र व प्रदेश सरकार से मांग की है कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन इक्कीस हज़ार रुपये घोषित किया जाए। केंद्र व राज्य का एक समान वेतन घोषित किया जाए। आंगनबाड़ी,मिड डे मील,आशा व अन्य योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। मनरेगा में दो सौ दिन का रोज़गार दिया जाए व उन्हें राज्य सरकार द्वारा घोषित साढ़े तीन सौ रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए। श्रमिक कल्याण बोर्ड में मनरेगा व निर्माण मजदूरों का पंजीकरण सरल किया जाए। निर्माण मजदूरों की न्यूनतम पेंशन तीन हज़ार रुपये की जाए व उनके सभी लाभों में बढ़ोतरी की जाए। कॉन्ट्रैक्ट,फिक्स टर्म,आउटसोर्स व ठेका प्रणाली की जगह नियमित रोज़गार दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए। सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश व निजीकरण बन्द किया जाए। 44 श्रम कानून खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं(लेबर कोड) बनाने का निर्णय वापिस लिया जाए। सभी मजदूरों को ईपीएफ, ईएसआई , ग्रेच्युटी,नियमतित रोज़गार ,पेंशन,दुर्घटना लाभ आदि सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाए। भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए। पेट्रोल,डीज़ल,रसोई गैस की कीमतें कम की जाएं। रेहड़ी,फड़ी तयबजारी क़े लिए स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट को सख्ती से लागू किया जाए।
0 Comments