केंद्रीय बजट 2023 को किसान सभा ने आम जनता विरोधी बताया। हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर ने कहा कि केंद्रीय बजट में आम जनता और ग्रामीण गरीब के लिए कोई भी प्रावधान नहीं किया है। मनरेगा, पीएम किसान सम्मान निधि, ग्रामीण विकास शिक्षा, स्वास्थ्य के बजट आबंटन में कमी कर दी गई है। वहीं बजट में उर्वरक और खाद्य सब्सिडी में भी सरकार ने कटौती की है।
डॉ. तंवर ने कहा कि सरकार ने बजट में किसानों को राहत देने के बजाय उन्हें केवल ऋण देने की पेशकश की है, जबकि कर्ज़ के कारण हर साल हज़ारों किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
डॉ. तंवर ने कहा कि एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है लेकिन ग्रामीण बेरोजगारों को छोटा-मोटा रोजगार देने वाले मनरेगा के कार्यदिवस और बजट को बढ़ाने के बजाय सरकार ने इसका बजट कम कर दिया।
न्यूनतम समर्थन मूल्य और 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के वादे पर भी बजट में की जिक्र नहीं है जो किसानों के साथ बहुत बड़ा धोखा और वादाखिलाफी है।
डॉ. तंवर ने कहा कि हिमाचल के किसानों को बजट से निराशा हाथ लगी है। उम्मीद थी कि केंद्र सरकार सेब के आयात शुल्क को सौ फीसदी बढ़ाकर बागवानों को राहत देगी लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया। वहीं प्रदेश के बागवान जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर समर्थन मूल्य की मांग कर रहे हैं लेकिन इस पर भी सरकार का बजट मौन है। वहीं प्रधानमंत्री हर चुनावों से पहले प्रदेश के किसानों से वादा करके जाते हैं कि यहां के फल और सब्ज़ी उत्पादकों के लिए सीए स्टोर, प्रसंस्करण उद्योग स्थापित करेगी लेकिन अभी तक उस दिशा में कोई प्रयास नहीं हुए हैं और न ही बजट में सब्ज़ी आदि पर कोई समर्थन मूल्य देने का प्रावधान किया गया है। उल्टा उर्वरकों पर सब्सिडी में कटौती की गई है जिससे लागत मूल्य बढ़ेगा।
प्रदेशाध्यक्ष ने कहा कि सरकार मोटे अनाजों को पैदा करने पर तो ज़ोर दे रही है लेकिन उसके लिए पर्याप्त बीज के प्रावधान, उत्पादन की कमी और घाटे पर कोई मुआवजा देने या उसके विपणन के लिए विशेष प्रावधान पर सरकार का बजट कुछ नहीं कहता। प्रदेश में सबसे अधिक फसल मक्की पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा के बावजूद न तो कभी उसका घोषित समर्थन मूल्य पूरा मिलता है और न ही सरकार उसकी खरीद के इंतजाम करती है।
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