हिमाचल प्रदेश की संस्कृति और सभ्यता बहुत समृद्ध है यहां की प्राचीनतम परम्पराएं एवं संस्कृति ही यहां की पहचान है। यहां के लोग इन सांस्कृतिक परम्पराओं और मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रशंसा के पात्र है।
कुल्लू जिला की तीर्थन घाटी में भी साल भर अनेक मेलों और धार्मिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है जो यहां की सांस्कृतिक समृद्धि को बखूबी दर्शाता है। ये मेले और त्यौहार यहां के लोगों के हर्ष उल्लास और खुशी का प्रतीक है।
तीर्थन घाटी के विभिन्न गांवों में हर साल 13 से 15 फरवरी तक फागली उत्सव या मुखौटा नृत्य का आयोजन फाल्गुन सक्रांति के दौरान किया जाता है। कुछ चयनित किए हुए लोगों द्वारा मुखौटा नृत्य करके गांव से आसुरी शक्तियों को भगाया जाता है जिससे पूरे साल भर गांव में सुख समृद्धि बनी रहती है।
इसी कड़ी में तीर्थन घाटी के गांव पेखड़ी, नाहीं , तिंदर, डिंगचा, फरियाडी, शर्ची, बशीर और कलवारी आदि गांवों में आजकल फागली उत्सव की धूम मची हुई है। आजकल तीर्थन घाटी में पर्यटक घूमने फिरने के साथ साथ यहां के प्राचीनतम मुखौटा नृत्य देखने का भी भरपूर आनंद ले रहे हैं। वहीं कल बुधवार को इस तीन दिवसीय फागली उत्सव का समापन हो जाएगा।
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और ट्राउट मछली के लिए महशुर उपमण्डल बंजार की तीर्थन घाटी पर्यटकों के लिए एक पसंदीदा स्थली बनती जा रही है। यहां पर दूर दराज पहाड़ी क्षेत्र में बसे छोटे छोटे सुन्दर गांव, यहां की नदियां नाले और झरने, चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों, जंगलों और बर्फ से ढकी ऊंची पर्वतशृंखलाएँ इस घाटी की सुंदरता को चार चाँद लगती है। प्राकृतिक सौंदर्य के साथ साथ पर्यटकों को यहां की प्राचीनतम संस्कृति भी खूब भा रही है।
तीन दिवसीय मुखौटा उत्सव में घाटी के स्थानीय लोगों के अलावा बाहरी राज्यों पश्चिमी बंगाल, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान आदि के पर्यटको ने भी शिरकत करके फागली देखने का खूब लुत्फ उठाया। पर्यटक इस नृत्य को देख कर रोमांचित हो उठे और इसकी फोटो विडियो अपने कैमरा में कैद कर ले गए है। इनका कहना है कि प्राकृतिक सौंदर्य के साथ साथ यहां की प्राचीनतम संस्कृति भी बहुत समृद्ध है।
पहले दिन छोटी फागली मनाई जाती है जिसमें एक सीमित क्षेत्र तक ही नृत्य एवं परिक्रमा की जाती है और दूसरे दिन बड़ी फागली का आयोजन होता है जिसमे मुखौटे पहने हुए मंदयाले गांव के हर घर में प्रवेश करके सुख समृद्धि का आशिर्वाद देते है इस दिन पूरे गांव में एक विशेष व्यंजन चिलड्डू बनाया जाता है तथा शाम के समय देवता के मैदान में भव्य नाटी का आयोजन होता है जिसमें स्त्री व पुरुष साथ साथ नृत्य करते है।
इस तीन दिवसीय फागली उत्सव में परिवार के कुछ चयनित पुरुष सदस्य अपने अपने मुँह में विशेष किस्म के प्राचीनतम मुखौटे लगाते है तथा तीन दिन तक हर घर व गांव की परिक्रमा गाजे बाजे के साथ करते हैं तथा अंतिम दिन देव पूजा अर्चना के पश्चात देवता के गुर के माध्यम से राक्षसी प्रवृति प्रेत आत्माओं को गांव से बाहर दूर भगाने की परंपरा निभाई जाती है। इस उत्सव में कुछ स्थानों पर स्त्रियों को नृत्य देखना वर्जित होता है क्योंकि इस में अश्लील गीतों के साथ गालियाँ देकर अश्लील हरकतें भी की जाती है।
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