केंदीय बजट में दलितों,वंचितों,आदिवासियों, अल्पसंख्यकों की शिक्षा प्रोत्साहन की उपेक्षा: हरीश, प्रांत अध्यक्ष एसएफआई।

✍️ सार्वजनिक शिक्षा शब्द का बजट में उल्लेख तक नहीं।
✍️ अनुसूचित जाति एवम अनुसूचित जनजाति विभिन्न छत्रवृतियां बंद।
✍️अल्पसंख्यक,अनुसूचित जाति एवम अनुसूचित जनजाति छात्रों का अनुपात घटा।

ब्यूरो रिपोर्ट शिमला।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अंतर्गत एसएफआई छात्र संगठन के प्रदेशाध्यक्ष हरीश एवम महासचिव सुरजीत ने शिमला से जारी प्रैस विज्ञप्ति में केंद्रीय बजट पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि केंद्रीय बजट 2023 में शिक्षा क्षेत्र से उठाई गई लगभग सभी दबावपूर्ण मांगों की हाल के वर्षों में उपेक्षा की गई है। बजट में ऐसी कोई ठोस घोषणा शामिल नहीं है, जो सार्वजनिक शिक्षा के लिए रत्ती भर भी आशा प्रदान करती हो। वित्त मंत्री द्वारा पूरे बजट भाषण में एक बार भी 'सार्वजनिक शिक्षा' शब्द का उल्लेख नहीं किया गया। पूरा बजट भाषण यह अहसास कराता है कि शिक्षा अब सरकार की जिम्मेदारी नहीं रह गई है।

बजट 2022-23 की अनुमानित राशि के 2.64% से बजट अनुमान के 2.50% तक शिक्षा के हिस्से में गिरावट आई है। साथ ही, बजट शिक्षा को सकल घरेलू उत्पाद का 3% भी सुनिश्चित नहीं कर सका, जो कि नई शिक्षा नीति में किए गए वादे का केवल आधा है। राष्ट्रीय शिक्षा मिशन के लिए बजट आवंटन में 600 करोड़ रुपये रुपए की गिरावट भी है।
एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती की घोषणा तेज हो गई है। सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि भारत में जनजातीय विशेष केंद्रित जिलों में केवल 3.4% स्कूलों में आईसीटी (इंटरनेट और संचार प्रौद्योगिकी) सुविधाएं हैं। इसका मतलब यह है किरुपए की कमी है। बहुचर्चित 'डिजिटल इंडिया' में इन क्षेत्रों के छात्र शैक्षिक सुविधाओं से बहुत पीछे हैं। यह देश में विद्यमान डिजिटल डिवाइड का एक गंभीर प्रश्न भी लाता है। कई ईएमआरएस खराब सुविधाओं, बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों की कमी आदि से पीड़ित होने की भी खबरें थीं। इन चिंताओं को बजट में भी संबोधित नहीं किया गया है।
मोदी शासन के दौरान कई फेलोशिप या तो बंद कर दी गईं या संख्या में भारी कमी कर दी गई। इसमें अल्पसंख्यक छात्रों के लिए मौलाना आजाद राष्ट्रीय फैलोशिप और एससी/एसटी/ओबीसी वर्गों के लिए विभिन्न छात्रवृत्ति को खत्म करना भी शामिल है। पहले भी वादा किया गया था कि फेलोशिप की संख्या बढ़ाई जाएगी। लेकिन नई फेलोशिप के लिए या पिछले वर्षों के दौरान हुई कमी की भरपाई के लिए बजट में कोई आवंटन नहीं है।

उच्च शिक्षा के अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई 2020-21) ने दिखाया है कि 2020-21 में अनुसूचित जाति के छात्रों का अनुपात पिछले वर्ष के 14.7% से गिरकर 14.2% हो गया। ओबीसी छात्रों का अनुपात 37% से घटकर 35.8% हो गया, और मुस्लिम छात्रों का अनुपात 5.5% से घटकर 4.6% हो गया। विकलांग व्यक्तियों की श्रेणी में छात्रों की संख्या भी 92,831 से घटकर 79,035 हो गई। ये सभी अनुपातहीन छात्र अनुपात पिछले कई वर्षों में केंद्र सरकारों द्वारा अपनाई गई छात्र विरोधी नीतियों का परिणाम हैं और हर साल केवल तेज होते हैं। यह शिक्षा के क्षेत्र में लागू की गई अनियंत्रित नव-उदारवादी नीतियों का भी परिणाम है, जिसके कारण शिक्षा का अत्यधिक निजीकरण हुआ और हाशिए के वर्गों के छात्रों को और अधिक बहिष्कृत कर दिया गया।

कक्षा एक में नामांकित छात्रों में से लगभग आधे छात्रों को हाई स्कूल द्वारा ही अपनी शिक्षा समाप्त करने के लिए मजबूर किया जाता है। उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा में प्रवेश करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या अभी भी 30% से कम है। हमें उच्च शिक्षा, नए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों, हर क्षेत्र में बेहतर सुविधाओं वाले सरकारी स्कूलों और फेलोशिप, मुफ्त अध्ययन सामग्री, छात्रावास, उचित मध्याह्न भोजन योजना आदि सहित वंचित वर्गों के छात्रों के लिए पर्याप्त सहायता प्रणाली के लिए अधिक धन की आवश्यकता है। इसमें से केंद्रीय बजट में जगह मिली है। केंद्र सरकार के घोर छात्र विरोधी बजट पर एसएफआई इसका सबसे जोरदार विरोध करती है।

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