बंजार की तीर्थन घाटी मे औषधीय पौधों की खेती एवं संरक्षण पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला हुई सम्पन्न ।

बंजार उपमण्डल की तीर्थन घाटी शाईरोपा के सभागार में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क प्रबंधन द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत हितधारकों के लिए क्षमता निर्माण हेतु औषधीय पौधों की खेती एवं संरक्षण पर सोमवार को दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में  कुल्लू जिले के 40 प्रगतिशील किसानों तथा 8 वन रक्षकों ने भाग लिया। इस कार्यशाला के शुभारंभ  अवसर पर हिमालयन अनुसंधान ग्रुप शिमला के निदेशक डा. लाल सिंह बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे।  डीसीएफ वन्यप्राणी विंग कुल्लू एलसी बंदना द्वारा मंगलवार को इसके कार्यशाला के समापन अवसर पर सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरण किए गए। इस अवसर पर राजकीय महाविद्यालय बंजार के प्रधानाचार्य जोगिंद्र ठाकुर, एसीएफ हंस राज और वन परिक्षेत्र अधिकारी परमानंद विशेष रूप से उपस्थिति रहे।
इस कार्यशाला के दौरान वैज्ञानिकों द्वारा उपस्थित किसानों को चुनिंदा एवं महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की खेती तकनीक,हिमालय क्षेत्रों में औषधीय पौधों की व्यवसायिक खेती की संभावनाएं, आधुनिक नर्सरी तकनीक, औषधीय पौधों का परिचय,  सामुदायिक भागीदारी के साथ जड़ी बूटियों की खेती और औषधीय पौधों की मांग एवं पूर्ति जैसे विषयों पर विस्तार पूर्वक जानकारियां दी गई। इसमें किसानों को औषधीय पौधों की खेती एवं संरक्षण पर जोर दिया गया है।

इस दो दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान डॉ. लाल सिंह निदेशक हिमालयन रिसर्च ग्रुप शिमला ने प्रतिभागियों को रखाल उगाने की विधि और चिरायता के औषधीय गुण तथा इससे बने उत्पाद पर जानकारी साझा की। इसके अलावा डॉ. संदीप शर्मा निदेशक हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला ने नर्सरी तकनीक के बारे में तथा डॉ. जगदीश सिंह वैज्ञानिक हिमयलय वन अनुसंधान संस्थान शिमला ने औषधीय पौधों की खेती और उनके संरक्षण के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी। वहीं डॉ. अश्वनी तापवाल वैज्ञानिक हिमायलय वन अनुसंधान संस्थान शिमला द्वार जैवb उर्वरकों के बारे में उपयोगी जानकारी दी गई है। डा. जोगिंद्र ठाकुर ने भी प्रतिभागियों को औषधिय जड़ी बूटियों की गुणवत्ता और उपयोगिता पर प्रकाश डाला है।

बैज्ञानिको ने किसानों को बताया कि जंगली जड़ी बूटियों भारत में हमेशा से औषधि का प्रमुख स्त्रोत रही है इसलिए विलुप्त हो रही उपयोगी जड़ी बूटियों को खेती के तहत लाए जाने की आवश्यकता है। इन्होंने बताया कि हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले औषधिय पौधे वैश्विक महत्व के साथ स्थानीय धरोहर भी है इसलिए इनकी खेती एवं संरक्षण किया जाना जरूरी है इसके साथ ही औषधीय पौधों की खेती से किसानों की आय में भी बढ़ोतरी हो सकती है।

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