13 जुलाई।
सेक्स के लिए क्या 'सहमति की उम्र' 18 साल से कम करनी चाहिए। तब जब भारत में 18 साल से कम उम्र वाले शख़्स को बालिग़ ही नहीं माना जाता है।
भारत में इंडियन मेजोरिटी एक्ट, 1875 के अनुसार 18 साल के युवा व्यस्क या बालिग़ माने गए हैं और इसके साथ ही उन्हें कई अधिकार भी दिए गए हैं।
संविधान के 61वें संशोधन में 18 साल के युवा को मतदान, ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने का अधिकार दिया गया।वहीं बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के मुताबिक शादी के लिए भारत में लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होना अनिवार्य बताई गई है ।हालांकि अब शादी की उम्र बढ़ाए जाने को लेकर भी केंद्र सरकार विचार कर रही है।
अब ये बहस भी तेज़ है कि सहमति की उम्र को 18 साल से कम किया जाना चाहिए।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ सहमति से बने रोमांटिक रिश्तों को पॉक्सो एक्ट के दायरे में लाने को लेकर चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं।
'सहमति की उम्र' पर विधि आयोग ने महिला और बाल विकास मंत्रालय से अपने विचार देने को कहा है।
लेकिन इस पर एक सवाल ये भी है कि अगर 'सहमति की उम्र' को घटाया जाता है तो इससे यौन अपराधों से बच्चों के सरंक्षण के लिए बने क़ानून (पॉक्सो) के प्रावधानों और नाबालिग़ से जुड़े अन्य क़ानूनों पर भी असर होगा।
यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए पॉक्सो एक्ट 2012 लाया गया था। इसमें 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को 'बच्चा' परिभाषित किया गया है और अगर 18 साल से कम उम्र के साथ सहमति से भी संबंध बनाए जाते हैं तो वो अपराध की श्रेणी में आता है।
ऐसी स्थिति में दोनों अगर नाबालिग़ हैं तब भी यही प्रावधान लागू होता है.मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में केंद्र से महिलाओं की सहमति की उम्र घटाकर 16 करने का अनुरोध किया था।
दरअसल कोर्ट के समक्ष 2020 में एक नाबालिग़ लड़की के साथ बारबार हुए बलात्कार और उसे गर्भवती करने का मामला सामने आया था।
इस आरोप में एक व्यक्ति के ख़िलाफ़ दायर की गई एफ़आईआर को रद्द करने की मांग की गई थी।
इस मामले में जज का कहना था, ''14 साल का हर लड़का या लड़की सोशल मीडिया को लेकर जागरुक है. उन्हें इंटरनेट की सुविधा भी आसानी से उपलब्ध है और वहीं बच्चे कम उम्र में प्यूबर्टी को हासिल कर रहे हैं.''
अदालत का कहना था कि प्यूबर्टी की वजह से लड़के और लड़की एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो जाते हैं जिसका नतीजा ये होता है कि वे सहमति से शारीरिक संबंध बना लेते हैं।
इस मामले में जस्टिस कुमार अग्रवाल ने कहा, ''मैं भारत सरकार से अनुरोध करता हूं कि महिला शिकायतकर्ता की उम्र 18 से घटा कर 16 कर दी जाए ताकि किसी के साथ अन्याय न हो.''
कोर्ट का कहना था, ''कोर्ट इस समूह के किशोरों के शारीरिक और मानसिक विकास को देखे तो तार्किक तौर पर ये समझेगा कि ऐसा व्यक्ति अपनी चेतना से अपने भलाई का फ़ैसला ले सकता है.''
आमतौर पर किशोर लड़के और लड़कियों में दोस्ती होती है और उसके बाद उनमें आकर्षण होता है और उनमें शरीरिक संबंध बनते हैं.वहीं पिछले साल कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा था कि विधि आयोग को सहमति से बनाए गए संबंधों में उम्र के मानदंडों पर दोबारा विचार करना चाहिए।
हाई कोर्ट की डिवीज़न बेंच का कहना था कि कोर्ट के सामने ऐसे कई आपराधिक मामले आ रहे हैं जहां 16 साल से ऊपर नाबालिग़ लड़कियों को लड़कों से प्यार हुआ हो ।
इन मामलों में लड़के नाबालिग़ थे या कुछ समय पहले ही बालिग़ हुए और उन्होंने इन लड़कियों के साथ संबंध बनाए।
इस मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने विधि आयोग से संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र पर दोबारा विचार करने को भी कहा था.इसी पृष्ठभूमि में विधि आयोग ने महिला और बाल विकास मंत्रालय से विचार मांगे हैं.
'सहमति की उम्र' घटाए जाने को लेकर अलग-अलग राय सामने आ रही है।
एक पक्ष जहां ये कहता है कि आजकल के माहौल में सहमति की उम्र को घटाया जाना चाहिए तो दूसरा पक्ष इससे होने वाली दिक्कतों की लिस्ट गिनवाता है.
हाई कोर्ट में वकील और महिला मामलों पर अपनी राय रखने वाली सोनाली कड़वासरा मानती हैं कि सहमति की उम्र घटाई जानी चाहिए।
वो इसका तर्क देते हुए कहती हैं, ''हम इस बात को लेकर चाहे असहज महसूस करें या स्वीकार न करें लेकिन हमारे समाज की ये सच्चाई है कि लड़के और लड़कियां 18 साल से कम उम्र में यौन संबंध बना रहे हैं. हालांकि मेरे पास इसबारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है.''
वे बताती हैं, ''क़ानून के समक्ष जब ऐसे युवाओं के मामले आते हैं तो देखा जाता है कि परिवार इज़्ज़त के नाम पर लड़के के ख़िलाफ़ पॉक्सो का मामला लगा देते हैं.''
वहीं कुछ मामलों में परिवार शादी के लिए बाद में मान जाते हैं लेकिन क़ानून तो वही सज़ा देगा जो प्रावधान होगा।
सहमति की उम्र को 16 साल कर दिया जाए तो मैं इससे सहमत हूं क्योंकि पॉक्सो क़ानून आने से पहले अगर लड़के और लड़की 15 साल के होते थे और शादी कर लेते थे तो सज़ा माफ़ हो जाती थी. लेकिन पॉक्सो आने के बाद इस प्रावधान को ख़त्म कर दिया गया. ऐसे में मैं कर्नाटक हाई कोर्ट के पक्ष में हूं।
लेकिन यहां एक सवाल ये भी है कि कोई ज़रुरी नहीं है कि लड़का और लड़की अगर शारीरिक संबंध बनाते ही हैं तो आगे जाकर शादी का विचार भी रखे और शादी करके अलग हो जाते हैं तो तब क्या होगा?
इस सवाल के जवाब में सोनाली कड़वासरा कहती हैं कि ऐसी आशंका तो हमेशा बनी रहेगी.सुप्रीम कोर्ट के वकील सत्यम सिंह, सोनाली की बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते।
वे कहते हैं कि क्योंकि कम उम्र में युवा रोमांटिक रिश्तों में संबंध बना रहे हैं इसका मतलब ये नहीं है कि सहमति की उम्र को घटा दिया जाना चाहिए।
उनके अनुसार, ''माना इस उम्र में युवाओं में हार्मोनल बदलाव होते हैं लेकिन इससे लड़कियों पर होने वाले शारीरिक असर जैसे वो गर्भवती हो जाती हैं तो उसके बाद आने वाली तकलीफ़ों, मानसिक प्रभाव को देखा जाना चाहिए. वहीं अगर बच्चा हो जाता है तो वो नाजायज़ कहलाएगा और फिर उसका सामाजिक असर भी होता है.''मुंबई स्थित महिला एक्टिविस्ट और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुचित्रा दालवी कहती हैं कि सहमति की उम्र को घटाने का मुद्दा काफ़ी जटिल है क्योंकि बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए ही पॉक्सो क़ानून लाया गया था।
वे कहती हैं, ''सहमति को केवल 'हां' या 'ना' की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि ये भी समझना चाहिए कि हां कहने के बाद उसका नतीजा क्या होगा.''
वे एक महत्वपूर्ण बिंदू को उठाते हुए कहती हैं कि भारत में सेक्स एजुकेशन नहीं दी जाती है।
इस शिक्षा के बिना क्या बच्चों से ये उम्मीद लगाई जा सकती है कि वो शारीरिक संबंध बनाने के विपरीत असरों से वाकिफ़ होंगे?
उनके अनुसार, ''यहां अगर कोई नाबालिग़ लड़की किसी व्यस्क जैसे 30 साल के व्यक्ति के साथ संबंध बनाती है तो आप उसे उत्पीड़न कहेंगे लेकिन अगर दोनों ही बालिग़ हैं तो क्या उसमें उत्पीड़न नहीं हो सकता. ये सोचने की ज़रूरत है.''
वहीं वकील सत्यम सिंह की बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ सुचित्रा दालवी कहती हैं कि मान लीजिए रोमांटिक संबंध में रहते हुए नाबालिग़ ने शारीरिक रिश्ते बनाए और लड़की गर्भवती हो जाती है तो इससे लड़के के साथ-साथ लड़की पर प्रभाव पड़ेगा।
उनके अनुसार, ''अगर लड़की गर्भपात कराती है तो उस पर होने वाले शारीरिक और मानसिक असर को दरकिनार नहीं किया जा सकता. इस स्थिति में समाज का नज़रिया लड़की के प्रति क्या होगा उसे समझा जा सकता है.''
सोनाली कड़वासरा भी कहती हैं कि ऐसे संबंधों में लड़की के साथ-साथ लड़के पर होने वाले प्रभाव को अलग होकर नहीं देखा जा सकता और सज़ा के प्रावधान पर ध्यान दिया जाना चाहिए.अगर दुनिया भर में देखा जाए तो औसतन सहमति की उम्र 16 साल है।
जहां भारत में ये उम्र 18 साल है वहीं दुनिया के अन्य देशों में ये 13 से 18 साल है और कई देशों में ये 16 वर्ष है।
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