वंदे भारत ट्रेनों में सीटें क्यों हैं खाली , उठने लगे हैं कई सवाल।



13 जुलाई।

 प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले सप्ताह दो वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाने के बाद कहा कि वंदे भारत ट्रेन भारत के मध्यमवर्ग में इतनी लोकप्रिय हो गई है कि कोने-कोने से मांग आ रही है और जल्द ही देश के हर कोने को जोड़ेगी। 15 अगस्त 2021 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में 75 वंदे भारत ट्रेनें चलाने की घोषणा की। इन सभी ट्रेनों को 15 अगस्त 2023, भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर चलाने का लक्ष्य रखा गया था।रेलवे के आंकड़े बताते हैं कि ट्रेन की मांग के आंकड़ों से वंदे भारत ट्रेन से जुड़े दावे और सोशल मीडिया पर दिखने वाली उत्सुकता अलग हैं। 

2019 की फरवरी में भारत में पहली वंदे भारत ट्रेन शुरू की गई थी. अब तक, 25 रूट्स पर कुल 50 वंदे भारत ट्रेनें चल रही हैं। जुलाई 2023 में चार नई भारत ट्रेनें शुरू होने की संभावना है। भारत में वंदे भारत ट्रेनें इतनी जल्दी चल रही हैं कि सवाल उठता है कि क्या इन ट्रेनों की वास्तविक मांग है? वास्तव में, कई वंदे भारत ट्रेनें सिर्फ आठ कोचों से चल रही हैं, लेकिन उनमें कर्मचारी नहीं हैं।

वंदे भारत ट्रेन, जो रानी कमलापति स्टेशन (भोपाल) से जबलपुर जाती है, सिर्फ 8 कोच की ट्रेन है, लेकिन अप्रैल 2023 से जून 2023 के बीच इस ट्रेन की औसत ऑक्यूपेंसी 32% रही।

वापसी में भी इस ट्रेन में केवल ३६ प्रतिशत यात्री थे। यह ट्रेन 16 कोच की होती तो भी लगभग 15% सीटें भर पाई होती। उस समय केएसआर बेंगलुरु से धारवाड़ के बीच चलने वाली वंदे भारत ट्रेन में लगभग 60% सीटें बुक हो सकीं। यह ट्रेन भी केवल आठ कोच की है। वापसी में भी इस ट्रेन में लगभग सभी सीटें भरी हुई हैं।

वर्तमान में इंदौर से भोपाल के बीच चलने वाली आठ कोच की वंदे भारत ट्रेन की हालत सबसे खराब है। इस ट्रेन में बस 21% सीटों पर मुसाफिरों ने सफर किया। वापसी में भी इस ट्रेन में केवल 29% सीटें भरीं। दिल्ली से अजमेर के बीच चलने वाली वंदे भारत ट्रेन की भी यही स्थिति थी, जिसमें केवल ६१ प्रतिशत सीटों की बुकिंग हो सकी थी।

वंदे भारत, जो मडगांव से मुंबई के शिवाजी टर्मिनस तक चलती है, भी केवल 55% सीटों पर यात्री ले गई।यही कारण है कि कई वंदे भारत ट्रेनों को क्षमता से बहुत कम लोग मिल रहे हैं। जबकि इस ट्रेन को भारत की सबसे आधुनिक ट्रेन और यूरोपीय डिजाइन से बनाया गया है।

आईसीएफ़ चेन्नई में निर्मित वंदे भारत ट्रेन को पहले ट्रेन-18 नाम दिया गया था क्योंकि रेलवे की योजना में यह ट्रेन 2018 में शुरू होने वाली थी। 2020 में इसी तकनीक पर ट्रेन-20 भी शुरू होना था। रेलवे ने कहा कि एसी क्लास स्लीपर ट्रेन मार्च 2024 तक शुरू हो सकती है। माना जाता है कि इस ट्रेन का नाम वंदे भारत की तरह हो सकता है।

वंदे भारत ट्रेनें शताब्दी एक्सप्रेस का विकल्प हैं। इसमें भी चेयर कार वाले डिब्बे हैं। 10 जुलाई 1988 को भारत में पहली शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन चलाई गई। शुरू में यह ट्रेन ग्वालियर तक चली थी, लेकिन बाद में इसे भोपाल तक बढ़ा दिया गया। शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन के पहले सफर का गवाह वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह हैं, जो पहले भारतीय रेल पत्रिका का संपादक था। 

माधव राव सिंधिया उस वक़्त रेल मंत्री थे और वह ट्रेन भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की जन्म शताब्दी के मौक़े पर शुरू की गई थी, अरविंद कुमार सिंह ने कहा। यद्यपि ट्रेन में नेहरूजी की कोई फोटो नहीं थी, लेकिन इसे आधुनिक और २१वीं सदी का ट्रेन बताया गया।”




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