ABD NEWS जालंधर : 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में निहत्थे हिंदुस्तानियों पर गोलियां की बौछार करवाने वाला जनरल रेजिनाल्ड डायर नरसंहार से दो दिन पहले तक जालंधर छावनी स्थित कोठी में रहता था। यह बात कम ही लोगों को ज्ञात है। क्रूर जनरल डायर शुरुआत में माल रोड स्थित फ्लैग स्टाफ हाउस में रहता था। इसके बाद उसने अपने लिए आलीशान भवन का निर्माण करवाया और उसे 'द लांग एश्टन ' नाम दिया। यह इमारत आज भी जलियांवाला बाग में निर्दोष देशवासियों का खून बहाने वाले उस क्रूर जनरल की याद दिलाती है। जनरल डायर अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग रवाना होने से दो दिन पहले तक 11 अप्रैल 1919 तक यहां पर रहा था।
अंग्रेज सैनिकों के लिए बनवाई गई थी छावनी : वर्ष 1846 में जब अंग्रेजों ने जालंधर को अपने कब्जे में लिया था तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने फौजियों के लिए शहर के एक बाग में अस्थायी छावनी बना दी थी। वर्ष 1860 में कंपनी की फौजो को स्थायी तौर पर बैरकों में रखने व अन्य मिलिट्री साजो-सामान की संभाल के लिए रामामंडी, संसारपुर व सोफी के बीच गांव हटवाकर जालंधर छावनी का निर्माण करवाया था। वर्ष 1861 में अंग्रेज वायसराय लार्ड मैकाले भारत आया तो अंग्रेजों ने कंपनी बाग में ठहरी अंग्रेज फौज को नई बनाई गई छावनी में भेज दिया । इसी में कुख्यात जनरल डायर की रिहायश बनी हुई है। इसमें आज भारतीय सेना के अधिकारी रह रहे हैं।
छावनी में रहने वाले 92 वर्षीय बुजुर्ग ललिता प्रसाद महावर कहते हैं कि उनके बुजुर्ग अकसर इस कोठी के बारे में चर्चा करते थे। जनरल डायर जालंधर छावनी में स्थित अंग्रेज हुकूमत की 45वीं इंफ्रेंट्री ब्रिगेड का ब्रिगेड जनरल बनकर इंग्लैंड से पंजाब पहुंचा था। अमृतसर भी उसके अधिकार क्षेत्र में पड़ता था। उसने माल रोड पर शानदार घर का निर्माण करवाया था। इसके ऊपरी हिस्से पर गुंबद था। सफेद रंग की इस विशाल इमारत के प्रांगण में जनरल डायर ने अपने हाथों से सिल्वर ओक का पौधा लगाया था, जो इस समय विशाल वृक्ष बन चुका है। 'द लांग एश्टन' को बड़ी खूबसूरती से बनाया गया है। इमारत के सामने बरामदा बना है, जबकि बीच में बना गुंबद इसकी खूबसूरती बढ़ाता है। अंदर ड्राइंग रूम, डाइनिंग रूम, किचन, बाथरूम व बेडरूम हैं।
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