द हिंदू ने मोहम्मद मुइज़्ज़ू के इसी इरादे से संबंधित एक रिपोर्ट की है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक़, मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने एक इंटरव्यू में कहा कि राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने के बाद उनकी पहली प्राथमिकता ये होगी कि 'पहले ही दिन' भारतीय सैनिकों को बाहर किया जाए.
भारतीय सैनिकों को मालदीव से बाहर करने के लिए मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने इंडिया आउट अभियान चलाया था.
ये अभियान चुनावों में हारे राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के ख़िलाफ़ भी था, जिनकी विदेश नीति को 'इंडिया फर्स्ट' माना जाता था.
मालदीव में कितने भारतीय सैनिक हैं?
मालदीव में कितने भारतीय सैनिक हैं?
द हिंदू ने मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स यानी एमएनडीएफ के हवाले से बताया है कि मालदीव में 75 भारतीय सैनिक मौजूद हैं.
ये सैनिक उन डोर्नियर एयरक्राफट और दो हेलिकॉप्टर्स को चलाते हैं, जो भारत सरकार ने मालदीव को तोहफे में दिए थे.
ये हेलिकॉप्टर एक दशक से ज़्यादा वक़्त से मालदीव में हैं.
हेलिकॉप्टर सत्ता से बाहर हुए इब्राहिम मोहम्मद के चुनाव जीतने से पहले से मालदीव में हैं. 2018 में इब्राहिम मोहम्मद ने अब्दुल्ला यामीन को हराया था.
जिस विपक्षी गठबंधन से जीतकर मोहम्मद मुइज़्ज़ू राष्ट्रपति बने हैं, उसके मुखिया यामीन हैं.
मालदीव के अनुरोध पर साल 2020 में डोर्नियर एयरक्राफ्ट भारत ने तोहफे में दिया था.
भारत की तरफ़ से दिए एयरक्राफ्ट और हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल मेडिकल इमरजेंसी, सर्च, बचाव कार्य, ट्रेनिंग, निगरानी रखने के लिए किया जाता है.
द हिंदू अपनी रिपोर्ट में लिखता है कि मोहम्मद मुइज़्ज़ू, यामीन और उनके राजनीतिक कैंप के लिए भारत से रिश्ता एक संवेदनशील मसला है.
यामीन के कार्यकाल के दौरान चीन के प्रति झुकाव किसी से छिपा नहीं है. यामीन के कार्यकाल के दौरान 2013 से 2018 तक मालदीव और भारत के रिश्ते तनावपूर्ण रहे थे.
इस कार्यकाल के बाद यामीन इस बात पर भी ज़ोर देते रहे हैं कि भारत अपने हेलिकॉप्टर वापस ले जाए.
हालांकि मुइज़्ज़ू ये कहते दिखते हैं कि वो पहले मालदीव समर्थक हैं और चीन, भारत या किसी भी देश की सैन्य मौजूदगी को अनुमति नहीं देंगे.
मुइज़्ज़ू कई बार चीन से मालदीव को मिली मदद पर बोलते रहे हैं. हालांकि वो चीन समेत दूसरे देशों से मालदीव के लिए क़र्ज़ पर कुछ नहीं बोलते हैं.
द हिंदू लिखता है कि मुइज़्ज़ू के बार-बार भारतीय सैनिकों को हटाने की बात के पीछे दो कारण नज़र आते हैं.
पहला- अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने मालदीव चुनाव को भारत बनाम चीन की जीत के रूप में पेश किया. ये बात मालदीव के राजनीतिक पर्यवक्षकों के लिए भी चिंता का सबब रही कि कैसे राष्ट्रपति चुनाव में किसी घरेलू मुद्दे से ज़्यादा भारत और चीन की भू-राजनीतिक प्रतिद्वंदिता पर बात हुई.
दूसरा- मालदीव से भारतीय सैनिकों को हटाने पर मुइज़्ज़ू अपनी बात को दोहरा इसलिए भी रहे हैं ताकि चुनाव से पहले समर्थकों से जो वादा किया था, उसे पूरा कर सकें.
हालांकि नवंबर में राष्ट्रपति पद की ज़िम्मेदारी संभालने के बाद मुइज़्ज़ू की विदेश नीति का पता चलेगा.
द हिंदू अपनी रिपोर्ट में लिखता है कि मुइज़्ज़ू ने जो वादा किया है, उसे पूरा करने का दबाव उन पर होगा.
भारतीय सैनिकों के अलावा ऐसे कई मुद्दे हैं, जो मुइज़्ज़ू का इंतज़ार कर रहे हैं.
मालदीव बड़ी आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है. मालदीव को 2024 और 2025 में सालाना 570 मिलियन डॉलर विदेशी क़र्ज़ चुकाना है.
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक़, 2016 में मुइज़्ज़ू सरकार को 1.7 बिलियन डॉलर विदेशी क़र्ज़ चुकाना होगा.
भारत और चीन की मदद के बिना इस बड़े क़र्ज़ को चुकाना मालदीव के लिए एक चुनौती भरा काम रहेगा.
ये दोनों देश मालदीव के बड़े सहयोगी हैं.
भारत के क्या हित हैं?
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक़, बीते चार सालों में भारत मालदीव का बड़ा सहयोगी बनकर उभरा है.
भारत मुख्य तौर पर सुरक्षा, आर्थिक मोर्चे पर मालदीव की मदद करता है. मालदीव की समाजिक आर्थिक विकास से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भारत ने 1.4 बिलियन डॉलर से मदद की है.
हिंद महासागर के इस द्वीप देश मालदीव से भारत के अपने सुरक्षा संबंधी हित भी हैं. इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल को लेकर भारत की चिंताएं भी हैं
मालदीव कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव का सदस्य है. भारत, श्रीलंका के साथ शुरू की इस त्रिपक्षीय पहल के साथ बाद में मॉरिशिस भी जुड़ा.
इस समूह का मकसद हिंद महासागर में समुद्री सहयोग को बढ़ावा देना है.
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