इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है, जिस पर हो रहा है भारी विवाद, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से क्या बदलेगा?
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायधीशों की एक संविधान पीठ इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड योजना की क़ानूनी वैधता से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही है.
ये मामला सुप्रीम कोर्ट में आठ साल से ज़्यादा वक़्त से लंबित है और इस पर सभी निगाहें इसलिए भी टिकी हैं क्योंकि इस मामले का नतीजा साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर बड़ा असर डाल सकता है.
इस मामले पर सुनवाई शुरू होने से एक दिन पहले 30 अक्टूबर को भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने इस योजना का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि ये योजना राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदों में "साफ़ धन" के इस्तेमाल को बढ़ावा देती है.साथ ही अटॉर्नी जनरल ने शीर्ष अदालत के सामने तर्क दिया कि नागरिकों को उचित प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना कुछ भी और सब कुछ जानने का सामान्य अधिकार नहीं हो सकता है.
इस बात का सन्दर्भ उस तर्क से जुड़ा हुआ है, जिसके तहत ये मांग की जा रही है कि राजनीतिक पार्टियों को ये जानकारी सार्वजानिक करनी चाहिए कि उन्हें कितना धन चंदे के रूप में किस से मिला है.
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