निरमण्ड में इन्द्र और व्रतासुर की सेना के मध्य अग्नि व जल के लिए चलता रहा संघर्ष।




 ▶️ ढरोपू देवता का लाव लश्कर के साथ मेले में आगमन।

▶️ देव-दानवों के मध्य जल व अग्नि के लिए पूरी रात चलता रहा संघर्ष।

12 दिसम्बर, निरमण्ड(कुल्लू)।

अखण्ड भारत दर्पण न्यूज़।

डी.पी.रावत,प्रधान सम्पदाक।

लाइव कवरेज:- मोहर राठी और कीमत राम जोशी।

ज़िला कुल्लू के बाह्य सिराज क्षेत्र के अन्तर्गत उप मण्डल निरमण्ड के तहत निरमण्ड कस्बे में स्थित दशनामी अखाड़े में बीती रात प्राचीन एवम परम्परागत बूढ़ी दीआऊड़ी(दीवाली) की रस्मों का निर्वहन किया गया।

 निरमण्ड के कबीरी परिवार के सदस्यों ने रात भर रामायण,महाभारत की घटनाओं का और पौराणिक कथाओं के पात्र बली राजा की गाथा का वर्णन लोक बोली काव्य छंदों के रूप में गायन द्वारा निर्वहन किया।

देर रात करीब पौने एक बजे खथंडा,निशानी,मातला आदि गांवों के लोगों ने गड़ियों की भूमिका में दशनामी अखाड़े में प्रवेश कर अग्नि पुंज के चारों ओर परिक्रमा करते हुए काव्य गायन पर थिरके। रात के अन्तिम पहर में निरमण्ड के लोगों ने दानवों की भूमिका में अग्नि के लिए छीना झपटी की। 

गौरतलब है कि प्राप्त जानकारी के अनुसार ऋग्वेद में वर्णित इन्द्र व व्रतासुर की सेनाओं के मध्य संघर्ष का मंचन हुआ। निरमण्ड गांव के एक समुदाय के विशेष के लोगों व खथंडा,निशानी,मातला आदि गांवों के गड़िया लोगों ने देवताओं की सेना में और दूसरे समुदाय विशेष के लोगों द्वारा दानवों की भूमिका निभाई। रात के अन्तिम समय में इन्द्र की सेना ने अग्नि पर अपना अधिकार जमाया।

पुख्ता जानकारी के अनुसार बूढ़ी दीवाली केवल निरमण्ड में ही नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले में भी बूढ़ी दीवाली प्राचीन समय से पीढ़ी दर पीढ़ी मनाई जा रही है। जन श्रुति के अनुसार निरमण्ड क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी अम्बिका के चार चंभुओं में से सबसे छोटे पुत्र चम्भू ढरोपू अपने ढरोपा गांव में स्थित मन्दिर से लोक वाद्य यंत्रों की थाप पर रथ में सवार हो कर निरमण्ड पहुंचे।

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