पश्चिम बंगाल में संदेशखाली की घटना के बाद अब कई लोगों के आधार कार्ड निष्क्रिय होने से आम जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है ।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेज कर गहरी चिंता जताई है।
साथ ही उन्होंने ऐसे लोगों को राज्य सरकार की ओर से वैकल्पिक कार्ड जारी करने का भरोसा दिया है ताकि उनको बैंकिंग समेत दूसरी सरकारी सुविधाएँ मिलती रहें।
ममता ने इस मामले को संशोधित नागरिकता क़ानून (सीएए) और एनआरसी से जोड़ते हुए इसे बीजेपी की सुनियोजित क़वायद करार दिया है।
उन्होंने कहा है कि सरकार किसी भी स्थिति में इस रणनीति को कामयाब नहीं होने देगी।
दूसरी ओर सीपीएम ने इसे केंद्र और राज्य सरकार की मिलीभगत का नतीजा बताया है।
पार्टी के प्रदेश सचिव मोहम्मद सलीम का कहना है कि लोकसभा चुनाव से पहले डर और आतंक का माहौल बनाने के लिए ही बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस मिल कर ऐसा कर रही हैं।
आधार कार्ड हुए रद्द
दरअसल, इस मामले की शुरुआत बीते सप्ताह के आख़िर में हुई थी।
राज्य के बर्दवान, नदिया और बीरभूम ज़िला समेत कुछ इलाक़ों में लोगों को अचानक यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) के राँची दफ़्तर से स्पीड पोस्ट के ज़रिए एक पत्र मिला।
इसमें कहा गया था कि भारत में रहने की पात्रता पूरी नहीं करने के कारण उनका आधार कार्ड निष्क्रिय किया जा रहा है।
इससे आम लोगों में डर फैल गया।उन्होंने स्थानीय प्रशासन से संपर्क किया। लेकिन प्रशासन के पास भी इसकी कोई जानकारी नहीं थी।
इसके बाद ममता बनर्जी ने मुख्य सचिव को इस मामले की ऑनलाइन शिकायत के लिए एक पोर्टल बनाने का निर्देश दिया।
उन्होंने साथ ही लोगों को राज्य सरकार की ओर से वैकल्पिक कार्ड देने का भी भरोसा दिया है।
इस मामले ने तूल तब पकड़ा जब कोलकाता से सटे उत्तर 24-परगना ज़िले के मतुआ बहुल इलाक़े में कई लोगों को ऐसा पत्र मिला।
इस समुदाय के लोग पहले से ही एनआरसी के विरोधी रहे हैं।आधार कार्ड रद्द होने की सूचना से बीते तीन दिनों से मतुआ समुदाय में चिंता बढ़ गई है।
यह समुदाय टीएमसी के अलावा बीजेपी का भी वोट बैंक रहा है। इसके बाद ही मुख्यमंत्री ने सोमवार शाम को राज्य सचिवालय में प्रेस कांफ्रेंस की।
उन्होंने कहा, “बीजेपी नागरिकता क़ानून लागू करने के लिए ही एक सुनियोजित रणनीति के तहत ऐसा कर रही है। लेकिन सरकार प्रभावित लोगों को एक नया कार्ड देगी ताकि उनको सरकारी कामकाज में कोई परेशानी नहीं हो.”
उनका कहना था कि इस क़वायद से मतुआ तबके के ग़रीब लोग ही सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं।
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