यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अ5युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
प्रभु का अवतार धर्म की स्थापना के लिए, अधर्म का नाश करने के लिए , साधु-सज्जन पुरुषों का परित्रण करने के लिए और असुर, अधम, अभिमानी, दुष्ट प्रकृति के लोगों का विनाश करने के लिए होता है।
साध्वी जी ने बताया कि धर्म कोई बाह्य वस्तु नहीं है। धर्म वह प्रक्रिया है जिससे परमात्मा को अपने अंतर्घट में ही जाना जाता है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं- त्मसपहपवद पे जीम तमंसप्रंजपवद वि हवक अर्थात् परमात्मा का साक्षात्कार ही धर्म है। जब-जब मनुष्य ईश्वर भक्ति के सनातन-पुरातन मार्ग को छोड़कर मनमाना आचरण करने लगता है तो इससे धर्म के संबंध में अनेक भ्रांतियाँ फैल जाती हैं। धर्म के नाम पर विद्वेष, लड़ाई-झगड़े, भेद-भाव, अनैतिक आचरण होने लगता है तब प्रभु अवतार लेकर इन बाह्य आड6बरों से त्रस्त मानवता में ब्रह्मज्ञान के द्वारा प्रत्येक मनुष्य के अंदर वास्तविक धर्म की स्थापना करते हैं। कृष्ण का प्राकट्य केवल मथुरा में ही नहीं हुआ, उनका प्राकट्य तो प्रत्येक मनुष्य के अंदर होता है, जब किसी तत्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष की कृपा से उसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
जिस प्रकार कृष्ण के जन्म से पहले घोर अंधकार था, कारागार के ताले बंद थे, पहरेदार सजग थे, और इस बंधन से छूटने का कोई रास्ता नहीं था। ठीक इसी प्रकार ईश्वर साक्षात्कार के आभाव में मनुष्य का जीवन घोर अंधकारमय है। अपने कर्मों की काल कोठरी से निकलने का कोई उपाय उसके पास नहीं है। उसके विषय-विकार रूपी पहरेदार इतने सजग होकर पहरा देते रहते हैं और उसे कर्म बंधनों से बाहर नहीं निकलने देते।इस अवसर पर साध्वी रजनी भारती व साध्वी राज नंदनी भारती द्वारा मधुर भजनों का गायन किया गया
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