अखण्ड भारत दर्पण (ABD) न्यूज पंजाब/पश्चिम बंगाल : पश्चिम बर्धमान के सीमावर्ती क्षेत्र झारखंड के मिहिजाम में पहली अप्रैल की अहले सुबह नागेन्द्र प्रसाद का निधन हो गया। वो लगभग 82 साल के थे। उनके बड़े बेटे पीयूष प्रसाद ने मुखाग्नि दी। जबकि छोटा बेटा विदेश में होने की वजह से अपने पिता के शवयात्रा में शामिल नहीं हो सका। पीयूष ने बताया कि पहली अप्रैल की सुबह पापा योगाभ्यास करने के बाद छत पर थोड़ी देर चहलकदमी कर वापस अपने कमरे में आ कर बिछावन पर लेट गए। और फिर वो कभी ना उठने वाली चिरनिद्रा में सो गये।
भारतीय पत्रकार सुरक्षा संघ के बंगाल प्रदेश प्रभारी प्रहलाद प्रसाद उर्फ पारो शैवलिनी ने कहा कि एक लोकप्रिय समाजसेवक के रूप में चिरपरिचित थे नागेन्द्र जी। छोटे भाई की तरह मुझ पर हमेशा स्नेह बरसाते रहे। दो दिन पहले उनसे मेरी बात हुई थी। उन्होंने मुझसे कहा था एक रुका हुआ आन्दोलन को पूरा करने का समय आ गया है। दरअसल, 2008 में ही झारखंड सरकार के कला संस्कृति खेलकूद एवं युवा विभाग ने मिहिजाम में महर्षि डाक्टर पारस नाथ बनर्जी की मूर्ति लगाने का आदेश निर्गत किया गया था। जो आज सोलह साल बाद भी नहीं लगाया जा सका है। सरकारी आदेश की अवहेलना करने का उन्होंने पुरजोर विरोध किया था। इसे शर्मनाक बताते हुए नागेन्द्र प्रसाद ने कहा था कि महर्षि डाक्टर पारस नाथ बनर्जी चुंकि एक बंगाली समुदाय से थे इसलिए उनकी मूर्ति स्थापित करने में जिला प्रशासन कोताही बरत रही है। उन्होंने कहा था,आईए इस आन्दोलन को गति प्रदान करें। परन्तु, वो खुद चिरनिंद्रा में सो गये।
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