सिर्फ रेल ही रेलवे क्वार्टरों को भी बचाना होगा,लेखक प्रहलाद प्रसाद उर्फ पारो शैवलिनी।

अखण्ड भारत दर्पण (ABD) न्यूज पश्चिम बंगाल : लोकसभा चुनाव 2024 के लिए रणभेरी बिगुल बज चुका है। सभी जानते हैं इस बार सात चरण में मतदान होगा। लेकिन, जानने वाली एक अहम बात यह भी है कि सबसे ज्यादा प्रहार अगर किसी संस्थान पर हुआ है या फिर यह कहना उचित होगा कि हो रहा है वो है रेलवे। रेलवे, अंग्रेजों का दिया हुआ एक नायाब तोहफा है इस देश को। ठीक उसी तरह जिस तरह मुगल शासक ने देश को जीटी रोड दिया। ये अलग बात है कि उपरोक्त दोनों शासकों ने केवल और केवल अपने फायदे के लिए ही भारत को लूटने के लिए ही ये दो तोहफे दिए थे।
आज की तारीख में, देश के इस ऐतिहासिक संस्थान पर लगातार प्रहार कर इसे बे-सरकारीकरण की तरफ धकेलने की साज़िश की जा रही है।
इस संदर्भ में मैं पश्चिम बर्धमान के चित्तरंजन रेल नगरी में बसे चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स की अंदरूनी चर्चा करुंगा। सीएलडब्ल्यू के नाम से पूरे देश-विदेश में यह कारखाना अति लोकप्रिय है। एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा और एकमात्र कारखाना है ये, जो आज की तारीख में अंतिम सांस ले रहा है। सच कहूं तो, रेलवे की जमीन पर बसे कुछ नन-रेल पर्सन को अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत भगाया जा रहा है। 60-70 वर्षों से रेल की जमीन पर बसे नन-रेल पर्सन को भेड़ - बकरियों की तरह खदेड़ा जा रहा है। यह भी सच है कि सीएल- डब्ल्यू समेत समस्त रेलवे में ना तो नयी नियुक्तियां हो रही है नाही किसी भी रेलकर्मी का प्रमोशन हो रहा है। जितने भी प्राईमरी स्कूल थे चित्तरंजन में सभी को बंद कर हाई स्कूल में मर्ज कर दिया गया है। तुक्का ये कि हिंदी और बंगला भाषा की जगह अंग्रेजी भाषा को दामाद की तरह इज्जत दी रही है। अंग्रेजी माध्यम की ज्यादातर स्कूलें प्राईवेट हैं। जहां केवल शिक्षा को छोड़कर बाकी सभी कुछ माल में मिलने वाली चीजों की तरह बिक्री हो रही है।
रेलवे क्वार्टरों की बात करुं तो उसे तोड़ा जा रहा है। कहा जा रहा है कि जब रेल कर्मचारियों की संख्या में कोई इजाफा ही नहीं हो रहा है,उलटे संख्या घट रही है ऐसे में इतने सारे क्वार्टरों की जरूरत नहीं है। क्वार्टरों को तोड़ना, तोड़ने के बाद ईंटों समेत खिड़की दरवाजे आदि के बिक्री करण में ठेकेदार और चिरेका प्रशासन दोनों ही लाल हो रहे हैं। होना यह चाहिए था कि इन रेल क्वार्टरों को 99 साल की लीज पर सेवानिवृत्त रेलकर्मियों को दे दिया जाता। ऐसा सुझाव यहां के रेलवे यूनियनों की तरफ से चिरेका प्रशासन को कई दफा दिया गया है।

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