कार्य में कठिनाई उत्पन्न करना अपराध है
इस धारा के तहत किसी लोक सेवक (Social Worker) को स्वैच्छिक रूप से उसके कर्तव्य से बाधित करना एक अपराध माना गया है। कोर्ट ने कहा कि बिना किसी प्रत्यक्ष कृत्य के केवल विरोध या असंयमित भाषा का उपयोग करना किसी अधिकारी के सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में बाधा डालने का अपराध नहीं होता।
न्यायाधीश संदीप शर्मा ने प्रार्थी सीता राम शर्मा द्वारा दायर याचिका (petitions ) का निपटारा करते हुए यह कानूनी स्थिति स्पष्ट की। प्रार्थी के अनुसार वह उस समय फेसबुक पर लाइव (Facebook Live) हुआ था जब पुलिस ने ट्रैफिक ड्यूटी (Traffic Duty) के दौरान उससे वाहन से संबंधित दस्तावेज दिखाने के लिए कहा। पुलिस ने प्रार्थी पर लोक सेवक को सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में बाधा डालने के आरोप लगाते हुए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 186 के तहत मामला दर्ज किया था।
प्रार्थी ने पुलिस की इस कार्यवाही को हाईकोर्ट (Highcourt) में चुनौती दी थी। कोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मामले में सटीक आरोप यह है कि वह फेसबुक पर लाइव हुआ और कुछ टिप्पणियां कीं, लेकिन निश्चित रूप से, उसके इस तरह के कृत्य को लोक सेवक के कामकाज में हस्तक्षेप(Interfere) करना नहीं माना जा सकता।
उच्च न्यायालय ने तथ्यों के साथ निर्णय सुनाया है
तथ्यों के अनुसार 24 अगस्त 2019 को पुलिस ने याचिकाकर्ता सीता राम शर्मा को कथित तौर पर सीट बेल्ट (Seat velt) नहीं पहनने के बाद अपना वाहन रोकने के लिए कहा था। याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर वाहन नहीं रोका। बाद में पुलिस ने उसके वाहन को दूसरी जगह खड़ा पाया और उससे पूछा कि वह क्यों नहीं रुका।
पुलिस के अनुसार याचिकाकर्ता ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और फेसबुक पर लाइव होकर आरोप (Blame) लगाया कि उसके पार्क किए गए वाहन (Vehicle) का बिना किसी कारण के चालान (Invoice) किया जा रहा है। इस पर पुलिस ने ड्यूटी (Duty) में बाधा डालने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कर आपराधिक कार्यवाही शुरू की।
अपने खिलाफ आपराधिक कार्यवाही (Criminal Proceedings) को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसने पुलिस के साथ न तो कोई दुर्व्यवहार किया और न ही कर्तव्य निभाने से उन्हे रोका। हालाँकि सरकार ने तर्क दिया था कि सरकारी कर्मचारी का वीडियो (Video) बनाने का कार्य ही बाधा उत्पन्न करने जैसा है। कोर्ट ने दलीलों का विश्लेषण करते हुए कहा कि रिकॉर्ड से साबित होता है कि याचिकाकर्ता ने फेसबुक पोस्ट करके सिर्फ यह बताने का प्रयास किया कि उसे पुलिस द्वारा अनावश्यक रूप से परेशान किया जा रहा है, जिसे अपराध नहीं कहा जा सकता।
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