सऊदी अरब में आज मुस्लिम देशों का सम्मेलन होने जा रहा है, जिसमें ईरान को 57 देशों का साथ मिल सकता
Saudi Arabia News: हमास के पॉलिटिकल चीफ इस्माइल हानिया की हत्या के बाद ईरान के गुस्से वाले तेवर थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. हालांकि ईरान और उसके प्रॉक्सी के अलावा किसी और अरब देश ने इजराइल से बदला लेने की कसम नहीं खाई है, न ही ऐसा कुछ करने की बात कही है.
हानिया की हत्या को एक हफ्ते से ज्यादा का समय बीत चुका है और ईरान अपने दम पर इजराइल पर हमला नहीं कर पाया है, लेकिन उसने साफ किया है कि वे बदला जरूर लेगा.
सऊदी अरब में आज मुस्लिम देशों का सम्मेलन होने जा रहा है, जिसमें ईरान को 57 देशों का साथ मिल सकता है। इस सम्मेलन में इजरायल के खिलाफ एकजुटता दिखाई जा सकती है, जिससे इजरायल को भारी नुकसान हो सकता है।
इस सम्मेलन में मुस्लिम देशों के नेता इजरायल के खिलाफ अपनी एकता का प्रदर्शन करेंगे और ईरान को अपना समर्थन देंगे। यह सम्मेलन सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हो रहा है, जिसमें 57 देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य इजरायल के खिलाफ मुस्लिम देशों की एकता को दिखाना है और ईरान को समर्थन देना है। इस सम्मेलन में मुस्लिम देशों के नेता इजरायल के खिलाफ अपनी एकता का प्रदर्शन करेंगे और ईरान को अपना समर्थन देंगे।
यह सम्मेलन मुस्लिम देशों के बीच एकता का प्रदर्शन करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिससे इजरायल को भारी नुकसान हो सकता है।
सऊदी अरब में एकजुट होंगे मुस्लिम देश
ईरान ने इजराइल के खिलाफ लड़ाई में OIC देशों का साथ मांगा है. ईरान के मांग पर सऊदी अरब के जद्दा में बुधवार को OIC की बैठक होने जा रही है. ये बैठक हानिया की हत्या और इस्लामी गणराज्य ईरान की क्षेत्रीय संप्रभुता के उल्लंघन पर केंद्रित रहेगी. इस बैठक में ईरान इजराइल के खिलाफ प्रतिबंध लगाने और जंग में साथ देने के लिए अरब देशों पर दबाव बना सकता है.
इस बैठक पर अमेरिका की भी खास नजर है, क्योंकि वे सुन्नी देशों के सहारे कूटनीतिक तरीके से इस मामले को निपटाना चाहता है. 57 देशों के संगठन में अगर इजराइल पर हमला करने पर सहमती बनती है तो ईरान प्रॉक्सी बनाम इजराइल जंग, अरब युद्ध में बदल सकता है.
कितना ताकतवर है संगठन
OIC 57 मुस्लिम देशों को संगठन है. ये संयुक्त राष्ट्र के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा संगठन है, जिसमें ताकतवर मुस्लिम देश सऊदी अरब, UAE का वर्चस्व है. इस संगठन में रूस जैसे कुछ गैर-इस्लामिक देश भी हैं, जो ऑब्जर्वर के तौर पर हैं. इस संगठन की स्थापना 25 सितंबर 1959 को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने और इस्लामिक वर्ल्ड के हितों की रक्षा करने के मकसद से हुई थी.
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