Bilaspur News: भाखड़ा के लिए छोड़ा घरवार, जख्मों पर नहीं लगा मर्म, 205 गांवों के विस्थापितों को राहत का इंतजार

 Bilaspur News: भाखड़ा के लिए छोड़ा घरवार, जख्मों पर नहीं लगा मर्म, 205 गांवों के विस्थापितों को राहत का इंतजार




63 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी बिलासपुर के 205 गांवों के लोगों को राहत नहीं मिली है। झील की वजह से विस्थापित हुए लोगों से बसा बिलासपुर पहला ऐसा शहर है जो 999 साल की लीज पर है।

पहली मानव निर्मित कृत्रिम झील गोबिंद सागर से बेघर हुए बिलासपुर के 205 गांवों के लोगों को अभी तक राहत नहीं मिल पाई है। 63 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। 9 अगस्त 1961 को अस्तित्व में आई झील के लिए अपने घर और जमीन छोड़ने वाले आज भी अपने हकों के लिए भटक रहे हैं। झील की वजह से विस्थापित हुए लोगों से बसा बिलासपुर पहला ऐसा शहर है जो 999 साल की लीज पर है। सब कुछ होते हुए भी इन्हें इस शहर में अपनी ही संपत्ति का पूरी तरह से मालिकाना हक नहीं मिला है।

63 साल के लंबे अरसे के बाद भी लोगों को सुविधाओं के नाम पर केवल कोरे आश्वासन मिले। हर पांच वर्ष बाद होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के समय नेताओं को विस्थापितों की याद जरूर आती है और सत्ता मिलने पर विस्थापितों की समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर हल करने के दावे किए जाते हैं लेकिन सत्ता मिलने के बाद विस्थापितों को भूल जाते हैं। इस कारण आज भी विस्थापितों का पूरी तरह बसाव नहीं हो पाया है। भाखड़ा से बिलासपुर तक बनी इस झील की लंबाई करीब 70 किलोमीटर है। देश के विकास के लिए इस बांध में जिले की करीब 41 हजार एकड़ भूमि झील की भेंट चढ़ गई थी। तत्कालीन समय 11 हजार 777 परिवार जिले के बेघर हुए थे। उस समय केंद्र और प्रदेश सरकार की ओर से विस्थापितों के लिए किसी भी नीति का निर्धारण नहीं किया गया। इस कारण कुछ लोग आसपास के जंगलों में बस गए तो करीब 3 हजार 600 परिवारों को हरियाणा के सिरसा, हिसार और फरीदाबाद में जमीन दी गई। इनमें से कुछ लोग वापस बिलासपुर आ गए थे।

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