सुक्खू सरकार ने 10 कर्मचारियों को भेजे नोटिस, 15 दिनों में मांगा जवाब; जानें पूरा मामला

सुक्खू सरकार ने 10 कर्मचारियों को भेजे नोटिस, 15 दिनों में मांगा जवाब; जानें पूरा मामला


 हिमाचल प्रदेश में सरकार और कर्मचारियों के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच चुका है। सुक्खू सरकार ने हाल ही में दस कर्मचारी नेताओं को नोटिस जारी किया है, जिसमें उन्हें 15 दिनों के भीतर जवाब देने के लिए कहा गया है। इस नोटिस ने राज्य में पहले से चल रहे विवाद को और गहरा कर दिया है। कर्मचारी नेताओं पर सचिवालय में राज्य सरकार के कामकाज के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां करने और कर्मचारियों को उकसाने का आरोप लगाया गया है।

नोटिस में क्या कहा गया है?

उप सचिव एसए मनजीत बंसल की तरफ से जारी किए गए इस नोटिस में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कर्मचारी नेताओं ने अपने भाषणों में आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया और सरकार के खिलाफ उकसाने का प्रयास किया। यह आरोप है कि कर्मचारी नेताओं ने कुछ नीतिगत निर्णयों की आलोचना की और राज्य सरकार के कामकाज पर ऐसे बयान दिए, जो केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमों का उल्लंघन हैं। सरकार ने इन नेताओं से यह स्पष्ट करने को कहा है कि उनके खिलाफ केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965 के तहत विभागीय कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए।

सरकार की सख्ती और कर्मचारियों का विरोध

इस नोटिस के जारी होने के बाद, हिमाचल प्रदेश के कर्मचारी नेता गहरे आक्रोश में हैं। उन्हें सरकार की इस सख्ती से गहरा धक्का लगा है। हालांकि, सरकार ने यह साफ कर दिया है कि अगर निर्धारित समय सीमा के भीतर कर्मचारी नेताओं की ओर से कोई जवाब नहीं आता है, तो इसे उनकी चुप्पी माना जाएगा और कानूनी कार्रवाई को आगे बढ़ाया जाएगा।

कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें सरकार के इस कदम से और अधिक आक्रोशित कर दिया है। उनका मानना है कि सरकार ने उनके साथ वार्ता न करने और सीधे नोटिस जारी करने का जो तरीका अपनाया है, वह अस्वीकार्य है। कर्मचारियों ने काले बिल्ले लगाकर विरोध जताया है और इस स्थिति से निपटने के लिए एकजुट होकर कार्रवाई की चेतावनी दी है।

विवाद की शुरुआत: लंबित डीए एरियर की मांग

यह विवाद तब शुरू हुआ जब हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों ने सरकार से अपने लंबित महंगाई भत्ते (डीए) की किस्तों की मांग की। राज्य सरकार के पास कर्मचारियों की डीए एरियर की तीन किस्तें पहले से ही लंबित थीं, और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सरकार द्वारा कोई नई घोषणा न किए जाने से चौथी किस्त भी लंबित हो गई। इस स्थिति ने कर्मचारियों को आक्रोशित कर दिया, जिसके बाद उन्होंने सचिवालय में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ जनरल हाउस आयोजित कर अपना आक्रोश प्रकट किया और सरकार से जल्द से जल्द डीए एरियर जारी करने की मांग की। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार उनकी मांगों को अनदेखा कर रही है और उनके धैर्य की परीक्षा ले रही है।

कर्मचारियों की नाराजगी और सरकार की प्रतिक्रिया

कर्मचारियों का कहना है कि वे लंबे समय से सरकार से अपने डीए एरियर की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया। इससे नाराज होकर उन्होंने सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि उन्होंने सरकार के सामने अपनी मांगों को शांतिपूर्ण तरीके से रखा, लेकिन सरकार ने उनकी समस्याओं को सुलझाने की बजाय उन्हें नोटिस भेजकर दबाने की कोशिश की है।

दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि कर्मचारियों का यह विरोध अनुचित और असंवैधानिक है। सरकार के अनुसार, कर्मचारी नेताओं ने अपने भाषणों में सरकारी कामकाज के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां की हैं, जो केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमों का उल्लंघन है। सरकार का कहना है कि वह इस मामले में किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करेगी और आवश्यक कानूनी कार्रवाई करने के लिए तैयार है।

हिमाचल प्रदेश की राजनीति पर प्रभाव

इस विवाद का हिमाचल प्रदेश की राजनीति पर भी बड़ा असर पड़ सकता है। कर्मचारी राज्य के सबसे महत्वपूर्ण हिस्सों में से एक हैं, और उनके आक्रोश को अनदेखा करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। यदि सरकार और कर्मचारियों के बीच यह तकरार और बढ़ती है, तो इसका सीधा प्रभाव राज्य के आगामी चुनावों पर भी पड़ सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को इस विवाद को जल्द से जल्द सुलझाने के लिए कदम उठाने चाहिए, अन्यथा यह स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है। इसके अलावा, यह भी देखा जा रहा है कि अन्य कर्मचारी संघ भी इस विवाद में हस्तक्षेप कर सकते हैं, जिससे स्थिति और जटिल हो सकती है।

आगे की राह: समाधान की संभावना

अब सवाल यह उठता है कि सरकार और कर्मचारियों के बीच इस विवाद को कैसे सुलझाया जा सकता है। एक ओर जहां सरकार सख्ती से पेश आ रही है, वहीं दूसरी ओर कर्मचारी भी अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। ऐसे में दोनों पक्षों को संवाद के माध्यम से एक समाधान की ओर बढ़ना चाहिए।

कर्मचारियों का कहना है कि वे अपनी मांगों को लेकर तैयार हैं, लेकिन सरकार को भी उनकी बात सुननी चाहिए और उनके अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। वहीं, सरकार का कहना है कि वह कर्मचारियों की मांगों को समझती है, लेकिन उन्हें अनुशासन और कानून का पालन भी करना चाहिए।

इस विवाद का समाधान तभी संभव है जब दोनों पक्ष संवाद के माध्यम से एक-दूसरे की चिंताओं को समझें और एक साथ मिलकर समाधान की ओर बढ़ें। हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि कर्मचारियों की मांगों को ध्यान में रखते हुए वह इस विवाद को सुलझाए, ताकि राज्य में शांति और स्थिरता बनी रहे।

निष्कर्ष: समाधान की दिशा में कदम

हिमाचल प्रदेश में सरकार और कर्मचारियों के बीच चल रहा यह विवाद न केवल सरकार के लिए एक चुनौती है, बल्कि राज्य की राजनीति और प्रशासन पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में, सरकार और कर्मचारियों को संवाद और समझौते के माध्यम से इस विवाद को सुलझाने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। इससे न केवल राज्य में शांति और स्थिरता बनी रहेगी, बल्कि प्रशासनिक कार्यों में भी सुधार होगा।

अब यह देखना बाकी है कि सरकार और कर्मचारी नेताओं के बीच चल रही इस तकरार का समाधान कैसे निकलेगा, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि इस विवाद का असर हिमाचल प्रदेश की राजनीति पर लंबे समय तक बना रहेगा।

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