लेटरल एंट्री पर बदला रुख़: क्या मोदी सरकार तीसरी पारी में बैकफ़ुट पर है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार, जिसे दृढ़ता और निर्णय लेने की क्षमता के लिए जाना जाता है, इस समय एक नई चुनौती का सामना कर रही है। हाल के कुछ घटनाक्रमों ने राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठाया है कि क्या सरकार अपनी तीसरी पारी में बैकफ़ुट पर है। लेटरल एंट्री, वक़्फ संशोधन विधेयक, और प्रसारण विधेयक से जुड़े फैसलों को लेकर सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। इन फैसलों की वापसी या संशोधन के कारण सरकार के रुख में बदलाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
लेटरल एंट्री पर सरकार का रुख़
हाल ही में, 20 अगस्त, 2024 को केंद्र सरकार ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को निर्देश दिया कि वह लेटरल एंट्री के जरिए 24 मंत्रालयों में 45 अधिकारियों की भर्ती के विज्ञापन को रद्द कर दे। लेटरल एंट्री एक ऐसा माध्यम है जिसके तहत निजी क्षेत्र, अकादमिक संस्थानों, और अन्य गैर-सरकारी संगठनों से विशेषज्ञों को सरकारी सेवाओं में शामिल किया जाता है। इस पहल का उद्देश्य सरकारी विभागों में नई सोच और विशेषज्ञता लाना था।
मोदी सरकार ने पहले इस प्रक्रिया को एक महत्वपूर्ण सुधार के रूप में प्रस्तुत किया था, जिसे देश की प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार और उसे आधुनिक बनाने के लिए जरूरी माना जा रहा था। लेकिन विपक्षी दलों और कुछ प्रशासनिक विशेषज्ञों ने इसे पारंपरिक लोक सेवा भर्ती प्रक्रियाओं को कमजोर करने का प्रयास बताया।
लेटरल एंट्री के तहत नियुक्ति के लिए जारी किया गया विज्ञापन वापस लेने के पीछे मुख्य कारणों में से एक है विपक्ष और प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े कुछ प्रमुख संगठनों की आलोचना। उनका आरोप था कि यह कदम राजनीतिक नियुक्तियों को बढ़ावा दे सकता है और पारदर्शिता और निष्पक्षता के सिद्धांतों को कमजोर कर सकता है।
वक़्फ संशोधन विधेयक: सरकार बैकफ़ुट पर?
विपक्षी दलों की कड़ी आपत्तियों के बीच, मोदी सरकार ने वक़्फ संशोधन विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने का फैसला किया। 8 अगस्त, 2024 को यह निर्णय लिया गया, जो यह दर्शाता है कि सरकार इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने के लिए तैयार है।
विपक्ष का आरोप था कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाता है और यह असंवैधानिक है। इस विधेयक के माध्यम से वक़्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन में कुछ महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव था, लेकिन इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया। सरकार ने आलोचनाओं के बीच इस विधेयक को वापस लेने के बजाय इसे जेपीसी को भेजना उचित समझा।
यह फैसला सरकार की उस मंशा को भी दर्शाता है कि वह किसी भी विधेयक को लेकर व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श के बाद ही आगे बढ़ना चाहती है। लेकिन विपक्ष और आलोचकों का मानना है कि सरकार को यह फैसला बढ़ते दबाव के चलते लेना पड़ा, जो यह दर्शाता है कि सरकार इस मुद्दे पर बैकफ़ुट पर है।
प्रसारण विधेयक का मसौदा वापस लेना
13 अगस्त, 2024 को केंद्र सरकार ने प्रसारण विधेयक का नया मसौदा वापस ले लिया। इस विधेयक के प्रस्तावित प्रावधानों के कारण सरकार को भारी आलोचना का सामना करना पड़ा। आलोचना का मुख्य बिंदु यह था कि सरकार इस विधेयक के माध्यम से ऑनलाइन कॉन्टेंट पर अधिक नियंत्रण की कोशिश कर रही थी, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा हो सकता था।
इस विधेयक में ऑनलाइन सामग्री को नियंत्रित करने के लिए नए नियमों और प्रावधानों का प्रस्ताव था, लेकिन इसे लेकर सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म, और मानवाधिकार संगठनों में बड़ी चिंता व्यक्त की गई। आलोचकों का कहना था कि इस विधेयक के लागू होने से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता और विचारों की अभिव्यक्ति को नुकसान हो सकता है।
सरकार ने आलोचनाओं को ध्यान में रखते हुए विधेयक का मसौदा वापस ले लिया और यह घोषणा की कि वह इस पर और व्यापक चर्चा करेगी। यह निर्णय सरकार की रणनीतिक सोच का हिस्सा हो सकता है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह कदम दर्शाता है कि सरकार को इस मुद्दे पर पीछे हटना पड़ा है।
क्या सरकार बैकफ़ुट पर है?
इन तीन प्रमुख फैसलों के पीछे हटने या बदलाव के चलते, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या मोदी सरकार वास्तव में बैकफ़ुट पर है। आलोचकों का कहना है कि सरकार पर बढ़ते दबाव का असर हो रहा है और वह अपने कठोर निर्णयों पर पुनर्विचार कर रही है।
हालांकि, सरकार के समर्थकों का कहना है कि यह मोदी सरकार की परिपक्वता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास का प्रतीक है कि वह विपक्ष और नागरिक समाज की चिंताओं को सुनती है और आवश्यकतानुसार अपने रुख में बदलाव करती है। वे यह भी तर्क देते हैं कि यह फैसले सरकार की लचीली और प्रगतिशील सोच को दर्शाते हैं, जो बदलते समय और परिस्थितियों के अनुसार अपने फैसलों में संशोधन करने के लिए तैयार है।
सरकार की चुनौतियां
तीसरी पारी में मोदी सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। देश में राजनीतिक ध्रुवीकरण, आर्थिक मंदी, बढ़ती बेरोजगारी, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते दबाव ने सरकार की स्थिति को जटिल बना दिया है। विपक्ष इन मुद्दों पर सरकार को लगातार घेर रहा है, और सरकार को अपने फैसलों को लेकर अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
लेटरल एंट्री, वक़्फ संशोधन विधेयक, और प्रसारण विधेयक जैसे मामलों में सरकार की ओर से किए गए बदलाव इस बात का संकेत हो सकते हैं कि सरकार इन चुनौतियों से निपटने के लिए अपने रुख में लचीलापन दिखा रही है। लेकिन, यह भी संभव है कि सरकार को अपनी नीतियों के प्रभाव को लेकर बढ़ती आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जिसके चलते उसे अपने फैसलों पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है।
मोदी सरकार का अपनी नीतियों पर पुनर्विचार
लेटरल एंट्री के विज्ञापन की वापसी, वक़्फ संशोधन विधेयक को जेपीसी को भेजना, और प्रसारण विधेयक का मसौदा वापस लेना जैसे कदम यह दर्शाते हैं कि मोदी सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। यह घटनाएं यह भी दिखाती हैं कि सरकार इस समय विपक्ष और नागरिक समाज के दबाव का सामना कर रही है।
हालांकि, यह भी कहा जा सकता है कि यह सरकार की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास का प्रतीक है, जो व्यापक चर्चा और सहमति के आधार पर निर्णय लेना चाहती है। लेकिन, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले समय में सरकार अपनी नीतियों और निर्णयों को लेकर कितनी दृढ़ रहती है और क्या वह इन चुनौतियों का सामना करने में सफल हो पाती है।
इन हालातों में, यह कहना जल्दबाजी होगी कि सरकार पूरी तरह से बैकफ़ुट पर है, लेकिन यह निश्चित है कि सरकार को इन मुद्दों पर सावधानी से आगे बढ़ने की जरूरत है, ताकि वह अपने एजेंडे को सफलतापूर्वक लागू कर सके और देश की जनता का विश्वास बनाए रख सके।
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