बड़ा खुलासा: दिल्ली के चाचा नेहरू अस्पताल में पांच साल में 4000 से अधिक बच्चों की मौत, RTI से हुआ खुलासा

बड़ा खुलासा: दिल्ली के चाचा नेहरू अस्पताल में पांच साल में 4000 से अधिक बच्चों की मौत, RTI से हुआ खुलासा

 दिल्ली के चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में पिछले पांच वर्षों में पांच साल से कम उम्र के चार हजार से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है। यह चौंकाने वाला आंकड़ा सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी से सामने आया है। मौत की मुख्य वजहें सेप्सिस, निमोनिया, सेप्टिक शॉक और अन्य गंभीर बीमारियां बताई गई हैं। इस रिपोर्ट ने न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि सरकार और अस्पताल प्रशासन की कार्यक्षमता को भी कटघरे में खड़ा किया है।

RTI से हुआ खुलासा

दिल्ली के निवासी अमित गुप्ता ने आरटीआई के माध्यम से दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों से 2019 से लेकर जून 2024 तक की मौतों का ब्योरा मांगा था। इस आरटीआई के जवाब में चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय ने अपने आंकड़े प्रस्तुत किए। इन आंकड़ों के अनुसार, 2019 से 2023 तक, अस्पताल में 4,950 बच्चों की मृत्यु हुई। इनमें सबसे अधिक मौतें 2019 में हुईं, जब 875 बच्चों की जान चली गई। इसके बाद 2020 में 866, 2021 में 626, और 2022 में 548 मौतें दर्ज की गईं। वहीं, 2023 में जून तक 314 बच्चों की मौत हो चुकी थी।

मौतों के पीछे की वजहें

रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों की मौत की सबसे प्रमुख वजहें सेप्सिस, निमोनिया, सेप्टिक शॉक, और अन्य संक्रामक बीमारियां रही हैं। सेप्सिस, एक प्रकार का गंभीर संक्रमण होता है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली अत्यधिक प्रतिक्रिया करती है और जिसके कारण अंग विफल हो सकते हैं। निमोनिया, फेफड़ों में होने वाली एक गंभीर संक्रमण, बच्चों में मौत की बड़ी वजहों में से एक है। सेप्टिक शॉक भी एक खतरनाक स्थिति होती है, जिसमें शरीर का रक्तचाप अत्यधिक गिर जाता है और अंगों में पर्याप्त रक्त संचार नहीं हो पाता।

कोविड-19 महामारी का असर

इन मौतों के आंकड़ों को देखते हुए, यह स्पष्ट होता है कि कोविड-19 महामारी ने भी इस स्थिति को और खराब किया। 2020 और 2021 में महामारी के दौरान, अस्पताल में बच्चों की मौतों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। महामारी के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ा दबाव, मेडिकल संसाधनों की कमी, और समय पर इलाज न मिलने की वजह से बच्चों की हालत बिगड़ गई।

विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह आंकड़े बहुत ही गंभीर और चिंताजनक हैं। उनका कहना है कि बच्चों में सेप्सिस, निमोनिया और अन्य गंभीर बीमारियों से निपटने के लिए उचित प्रोटोकॉल और समय पर इलाज न होना इस समस्या की जड़ में है। इसके साथ ही, अस्पतालों में मेडिकल स्टाफ की कमी, उपकरणों का अभाव, और अन्य संसाधनों की कमी भी इस संकट को और बढ़ा रही है।

सरकार और अस्पताल प्रशासन की भूमिका

इस खुलासे के बाद दिल्ली सरकार और अस्पताल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं। चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय दिल्ली के सबसे प्रमुख बाल चिकित्सा अस्पतालों में से एक है, और यहां पर इतने बड़े पैमाने पर बच्चों की मौतें होना बेहद चिंताजनक है। सरकार की ओर से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन इस रिपोर्ट ने दिखाया है कि उन योजनाओं का प्रभाव जमीनी स्तर पर नहीं दिख रहा है।

परिवारों का दर्द

इन मौतों से प्रभावित परिवारों का दर्द शब्दों में बयां करना मुश्किल है। वे अपने बच्चों को खोने का गम झेल रहे हैं और इस स्थिति के लिए सरकार और अस्पताल प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कुछ परिवारों का कहना है कि उनके बच्चों को समय पर इलाज नहीं मिल पाया, जिससे उनकी जान चली गई।

भविष्य के लिए सुझाव

विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। सबसे पहले, अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर बनाने की आवश्यकता है। इसमें अधिक डॉक्टरों और नर्सों की भर्ती, आधुनिक चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता, और समय पर उपचार की सुविधा शामिल है। इसके अलावा, सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं के निरीक्षण और मॉनिटरिंग की प्रक्रिया को भी मजबूत करना होगा।

इसके अलावा, सेप्सिस, निमोनिया और अन्य गंभीर बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने की भी जरूरत है। कई बार माता-पिता इन बीमारियों के लक्षणों को समझ नहीं पाते, जिसके कारण बच्चों की स्थिति बिगड़ जाती है। जागरूकता अभियानों के माध्यम से इन बीमारियों के बारे में जानकारी देकर उन्हें बचाया जा सकता है।

स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोरियों को उजागर किया  

चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में हुई इन मौतों ने देश की स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोरियों को उजागर किया है। यह समय है कि सरकार और संबंधित अधिकारी इस दिशा में गंभीरता से सोचें और आवश्यक कदम उठाएं, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। बच्चों की जान बचाने के लिए समय पर और उचित चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।

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