भारत में सितंबर 2024 से शुरू होगी जनगणना: डिजिटल क्रांति और चुनौतियों के साथ

भारत में सितंबर 2024 से शुरू होगी जनगणना: डिजिटल क्रांति और चुनौतियों के साथ


भारत, एक ऐसा देश जिसकी आबादी 1.4 अरब से अधिक हो चुकी है, अब एक और ऐतिहासिक जनगणना की ओर बढ़ रहा है। भारतीय सरकार ने 2024 में जनगणना शुरू करने का फैसला लिया है, जो 2021 में कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित हो गई थी। यह जनगणना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके नतीजे भारत के विकास और नीतियों के निर्धारण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इस बार की जनगणना को डिजिटल बनाने के निर्णय ने इसे और भी खास बना दिया है। लेकिन इसके साथ ही कुछ चुनौतियाँ और सवाल भी खड़े हो रहे हैं, जिनका उत्तर ढूंढना समय की मांग है।

जनगणना की पृष्ठभूमि और इसकी महत्ता

जनगणना किसी भी देश के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है। यह वह माध्यम है जिसके द्वारा सरकार और नीति निर्माता देश की आबादी, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, आय, रोजगार, शिक्षा और अन्य महत्वपूर्ण आंकड़ों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जनगणना का महत्व और भी बढ़ जाता है।

भारत में हर दस साल में जनगणना होती है। पिछली बार 2011 में जनगणना हुई थी और अब 2021 में होने वाली जनगणना को महामारी के चलते 2024 तक स्थगित करना पड़ा। इसके कारण वर्तमान में नीतियों और योजनाओं का निर्माण 2011 के पुराने आंकड़ों के आधार पर हो रहा है। इस वजह से योजनाओं की प्रभावशीलता पर असर पड़ा है और इससे सरकार और नीति निर्माताओं की चिंता भी बढ़ी है।

डिजिटल जनगणना: एक क्रांतिकारी कदम

इस बार की जनगणना की सबसे खास बात यह है कि इसे पहली बार पूरी तरह से डिजिटल करने का निर्णय लिया गया है। यह कदम न केवल जनगणना प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाएगा, बल्कि इससे सटीकता और गति में भी वृद्धि होगी। नागरिकों को खुद अपनी जानकारी डिजिटल प्लेटफार्म पर दर्ज करने का अवसर मिलेगा, जिससे गलतियों की गुंजाइश कम होगी और डेटा संग्रहण में सुधार आएगा।

डिजिटल जनगणना की शुरुआत के साथ ही सरकार का यह प्रयास है कि अधिक से अधिक नागरिक इस प्रक्रिया में भाग लें और सही जानकारी प्रदान करें। इसके लिए सरकार ने एक विस्तृत योजना बनाई है, जिसमें विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्म और एप्स का उपयोग किया जाएगा। नागरिकों को अपनी जानकारी दर्ज करने में सहायता प्रदान करने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाए जाएंगे।

जनगणना के लिए बजट में कटौती: चिंता का विषय

हालांकि, इस बार की जनगणना के लिए बजट में भारी कटौती की गई है। 2021-22 में जनगणना के लिए ₹3,768 करोड़ आवंटित किए गए थे, लेकिन 2024-25 के बजट में इसे घटाकर केवल ₹1,309 करोड़ कर दिया गया है। इस बजट कटौती के कारण कई अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं ने चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि इससे जनगणना की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ सकता है और कई महत्वपूर्ण आंकड़ों के संग्रहण में कठिनाई हो सकती है।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह स्वतंत्रता के बाद पहली बार है जब सरकार ने समय पर जनगणना नहीं करवाई। उन्होंने यह भी कहा कि जनगणना में देरी के कारण विभिन्न सांख्यिकीय सर्वेक्षणों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, जैसे कि आर्थिक डेटा, महंगाई और रोजगार के अनुमान।

जनगणना की देरी के परिणाम

जनगणना की देरी ने न केवल नीति निर्माताओं के सामने चुनौतियां खड़ी की हैं, बल्कि इससे आम नागरिकों पर भी प्रभाव पड़ा है। जनगणना के आंकड़ों पर आधारित कई योजनाएं और कार्यक्रम समय पर शुरू नहीं हो पाए हैं। इसके अलावा, जनगणना की देरी के कारण देश में विभिन्न आर्थिक सर्वेक्षणों और अन्य सांख्यिकीय आकलनों की सटीकता पर भी असर पड़ा है।

आर्थिक सर्वेक्षणों में जनगणना के आंकड़ों का उपयोग किया जाता है, और जब ये आंकड़े पुराने होते हैं, तो सर्वेक्षणों की सटीकता पर असर पड़ता है। इससे नीति निर्माण और योजना निर्माण में भी गलतियों की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा, जनगणना के आंकड़ों के अभाव में रोजगार, शिक्षा, और सामाजिक सेवाओं के वितरण में भी असमानता आ सकती है।

सरकार की प्रतिक्रिया और अगले कदम

जनगणना की प्रक्रिया को समय पर पूरा करने के लिए गृह मंत्रालय और सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने एक समय सीमा तय की है। उनके अनुसार, जनगणना के परिणाम मार्च 2026 तक जारी करने का लक्ष्य है, जिसमें 15 साल की अवधि शामिल होगी। इस प्रक्रिया के दौरान सरकार का यह प्रयास होगा कि जनगणना के आंकड़े समय पर और सटीक रूप में उपलब्ध हों, ताकि नीति निर्माण और योजना निर्माण में इनका सही उपयोग हो सके।

सरकार ने जनगणना की तैयारी के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। इसमें डिजिटल प्लेटफार्म का विकास, नागरिकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, और जनगणना कर्मचारियों की नियुक्ति शामिल है। इसके अलावा, सरकार का यह भी प्रयास है कि बजट की कटौती के बावजूद जनगणना की प्रक्रिया को समय पर और सही तरीके से पूरा किया जा सके।

चुनौतियों और अवसरों का संगम

भारत में जनगणना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो न केवल देश की आबादी के आंकड़ों को सटीक रूप में प्रस्तुत करती है, बल्कि नीति निर्माण और योजना निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालांकि, इस बार की जनगणना कई चुनौतियों के साथ शुरू हो रही है। बजट में कटौती और जनगणना की देरी ने नीति निर्माताओं और अर्थशास्त्रियों के सामने कई सवाल खड़े किए हैं।

डिजिटल जनगणना एक क्रांतिकारी कदम है, जो जनगणना प्रक्रिया को और अधिक सटीक और पारदर्शी बनाएगा। लेकिन इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि जनगणना की गुणवत्ता और समय सीमा का पालन किया जाए। अगर सरकार इन चुनौतियों का सामना करने में सफल होती है, तो यह जनगणना न केवल भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी, बल्कि इससे देश के विकास और नीति निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा।

जनगणना का सही समय पर और सटीक रूप में होना आवश्यक है, ताकि सरकार और नीति निर्माता देश की वास्तविक स्थिति को समझ सकें और इसके आधार पर योजनाएं और कार्यक्रम बना सकें। जनगणना के परिणामों का देश के विकास और समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान होता है, और इसलिए यह जरूरी है कि इस प्रक्रिया को पूरी गंभीरता और सटीकता के साथ पूरा किया जाए। 

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