आईजीएमसी के आपातकालीन विभाग के बाहर कैंसर रोगी की मौत, अस्पताल से डिस्चार्ज के अगले ही दिन निधन
शिमला: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला स्थित इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) के आपातकालीन विभाग के बाहर लगी बेंच पर मंगलवार को एक कैंसर रोगी की मृत्यु हो गई। इस घटना ने न केवल अस्पताल प्रशासन बल्कि पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है, जहां एक कैंसर पीड़ित को उचित देखभाल और सहायता नहीं मिल पाई।
घटना का विवरण
मंगलवार दोपहर बाद जब आईजीएमसी के आपातकालीन विभाग के बाहर लगे बेंच पर एक व्यक्ति को मृत पाया गया, तो अस्पताल में हड़कंप मच गया। तत्काल वहां उपस्थित अस्पताल कर्मियों ने स्थिति का जायजा लिया और पाया कि मृतक एक कैंसर रोगी था, जिसे सोमवार को ही अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया था।
इस व्यक्ति के पास कोई पहचान पत्र नहीं मिला और न ही कोई परिजन साथ में था। अस्पताल प्रशासन द्वारा की गई जांच में पाया गया कि यह व्यक्ति एक ऐसी संस्था द्वारा देखभाल किया जा रहा था, जो अस्पताल में भर्ती ऐसे मरीजों की सहायता करती है, जिनके पास कोई परिजन नहीं होते। लेकिन यह भी स्पष्ट हुआ कि डिस्चार्ज होने के बाद इस व्यक्ति ने अस्पताल परिसर नहीं छोड़ा और यहीं बेंच पर सो गया, जहां उसकी मौत हो गई।
अस्पताल प्रशासन की प्रतिक्रिया
आईजीएमसी के वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राहुल राव ने इस मामले में कहा कि यह घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने बताया कि मृतक का शव फिलहाल शवगृह में रखा गया है और पुलिस को सूचित कर दिया गया है। डॉ. राव ने यह भी कहा कि अस्पताल में आने वाले हर मरीज को उचित देखभाल दी जाती है, लेकिन ऐसे मामलों में जहां मरीज के साथ कोई परिजन नहीं होता, स्थिति और भी जटिल हो जाती है।
डॉ. राव ने स्पष्ट किया कि अस्पताल से डिस्चार्ज करते समय मरीज को सभी आवश्यक निर्देश दिए जाते हैं, और यह सुनिश्चित किया जाता है कि वह अपने घर सुरक्षित पहुंच सके। लेकिन इस मामले में, मरीज ने अस्पताल परिसर नहीं छोड़ा और यही उसकी मृत्यु का कारण बना।
स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल
इस घटना ने स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर किया है। जहां एक तरफ सरकार और प्रशासन यह दावा करते हैं कि हर मरीज को उचित देखभाल और सहायता मिल रही है, वहीं इस घटना ने साबित कर दिया है कि यह दावा कितने खोखले हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि कैंसर जैसे गंभीर रोग से पीड़ित मरीजों के लिए डिस्चार्ज के बाद भी एक निगरानी और सहायता प्रणाली की जरूरत है, ताकि वे सुरक्षित रह सकें। ऐसे मरीज जो आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं या जिनके पास कोई परिजन नहीं होता, उनके लिए यह व्यवस्था और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
समाज की भूमिका
इस घटना ने समाज के सामने भी एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। ऐसे मरीज, जिनके पास कोई देखभाल करने वाला नहीं होता, उनके लिए समाज की क्या जिम्मेदारी है? क्या यह समाज का कर्तव्य नहीं है कि वह ऐसे लोगों की मदद के लिए आगे आए?
यह घटना इस बात की ओर भी इशारा करती है कि हमें अपने आसपास के लोगों के प्रति अधिक संवेदनशील और जागरूक होने की जरूरत है। अगर किसी ने इस व्यक्ति की स्थिति को समझा होता और उसे मदद की पेशकश की होती, तो शायद उसकी जान बचाई जा सकती थी।
पुलिस की जांच
पुलिस ने इस मामले में अपनी जांच शुरू कर दी है। पुलिस का कहना है कि वे यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि इस व्यक्ति के पास कोई परिजन था या नहीं, और अगर था तो वे क्यों अस्पताल नहीं पहुंचे। पुलिस ने यह भी कहा कि अगर कोई भी लापरवाही पाई जाती है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
अस्पताल से जुड़ी संस्था की भूमिका
मृतक की देखभाल करने वाली संस्था, जो कि अस्पताल से जुड़ी हुई थी, ने भी इस मामले में अपनी सफाई दी है। संस्था के एक प्रतिनिधि ने बताया कि वे उस व्यक्ति की देखभाल कर रहे थे, लेकिन डिस्चार्ज के बाद उसे घर भेजने की प्रक्रिया में कुछ असुविधा हो गई। संस्था ने यह भी कहा कि वे इस घटना से बेहद दुखी हैं और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाएंगे।
भविष्य की राह
यह घटना स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करती है। खासकर ऐसे मरीज, जो गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं और जिनके पास कोई परिजन नहीं है, उनके लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
सरकार और स्वास्थ्य प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे मरीजों को डिस्चार्ज करने के बाद भी उनकी देखभाल के लिए कोई ना कोई व्यवस्था बनी रहे। इसके साथ ही, समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और ऐसे मरीजों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए।
आपातकालीन विभाग के बाहर एक कैंसर रोगी की मौत
आईजीएमसी के आपातकालीन विभाग के बाहर एक कैंसर रोगी की मौत ने न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों को उजागर किया है, बल्कि समाज के सामने भी एक गंभीर सवाल खड़ा किया है। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वाकई में अपने समाज के कमजोर और असहाय लोगों की देखभाल करने में सक्षम हैं?
यह समय है जब हमें अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा और ऐसे लोगों की सहायता के लिए हर संभव प्रयास करना होगा। इसके साथ ही, सरकार और स्वास्थ्य सेवाओं को भी अपनी व्यवस्था में सुधार लाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों और हर मरीज को उचित देखभाल और सहायता मिल सके।
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