महिलाओं के पहनावे पर टिप्पणी करने वालों की घटिया मानसिकता पर LinkedIn पोस्ट हुआ वायरल: जानें पूरा मामला

 महिलाओं के पहनावे पर टिप्पणी करने वालों की घटिया मानसिकता पर LinkedIn पोस्ट हुआ वायरल: जानें पूरा मामला


कोलकाता: हाल ही में कोलकाता में आरजी कर अस्पताल में हुए रेप-मर्डर केस ने देशभर में महिला सुरक्षा, पुलिस और न्याय व्यवस्था, और पुरुषों की मानसिकता को लेकर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। इसी बीच, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लिंक्डइन (LinkedIn) पर महिलाओं के पहनावे को लेकर एक पोस्ट वायरल हो रहा है, जिसमें पब्लिक पॉलिसी कंसल्टेंट और वकील आशिमा गुलाटी ने कुछ पुरुषों की घटिया मानसिकता पर कड़ा प्रहार किया है।

घटना का विवरण

आशिमा गुलाटी, जो पेशे से वकील और पब्लिक पॉलिसी कंसल्टेंट हैं, ने हाल ही में लिंक्डइन पर एक पोस्ट किया, जो देखते ही देखते वायरल हो गया। इस पोस्ट का विषय उनके पहनावे, विशेष रूप से साड़ी पहनने के तरीके पर की गई एक टिप्पणी थी। एक पुरुष ने आशिमा के प्रोफाइल पिक्चर में उनके पहनावे को अनुचित बताया और कहा कि यह पेशेवर छवि के लिए आदर्श नहीं है।

यह टिप्पणी आशिमा और अन्य सोशल मीडिया यूजर्स को गहराई से चौंका गई। व्यक्ति के इस कमेंट ने एक व्यापक बहस को जन्म दिया, जहां आशिमा ने इस घटिया मानसिकता के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और इसे सार्वजनिक मंच पर लाने का साहस किया।

आशिमा गुलाटी की प्रतिक्रिया

आशिमा गुलाटी ने उस पुरुष के मैसेज का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए अपने पोस्ट में लिखा, “पुरुष बलात्कार करेंगे क्योंकि मैंने साड़ी उनकी पसंद से नहीं पहनी है। मेरी पोस्ट पर इस तरह के संदेश/कमेंट प्राप्त करना विडंबनापूर्ण है, जिनमें हमारे दैनिक जीवन, बॉलीवुड और कार्यस्थल में महिलाओं को वस्तु न मानने की बात कही गई है। इससे बच पाना बहुत कठिन है।”

उन्होंने आगे लिखा, “एक विशेष लिंग से मुझे प्राप्त प्रतिक्रियाओं में से कुछ टिप्पणियां: महिलाएं अपने शरीर को दिखाकर पुरुषों को लुभाती हैं, महिलाएं देर रात तक काम न कर के/अपनी पसंद के कपड़े न पहनकर/आदि ऐसी स्थितियों में न रहकर खुद को सुरक्षित कर सकती हैं, पुरुषों को केवल शरीर द्वारा लुभाया/प्रभावित किया जाता है और समाज में मीडिया, दैनिक चुटकुलों आदि जैसी किसी भी चीज से नहीं, केवल एक विशेष आर्थिक समूह ही बलात्कार करता है!”

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं

आशिमा का यह पोस्ट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, और इस पर हजारों लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दीं। कई यूजर्स ने उनके साहस की तारीफ की और कहा कि इस तरह की मानसिकता वाले लोगों को सार्वजनिक रूप से उजागर करना जरूरी है।

एक यूजर ने लिखा, “सोचिए अहंकारी पितृसत्ता एक महिला का इंसान की तरह रहना बर्दाश्त नहीं कर सकता है। किसी के स्वामित्व से मुक्त। यह कोई व्यक्ति विशेष नहीं बल्कि कई पीढ़ियों से चली आ रही एक विचार प्रक्रिया है।”

दूसरे यूजर ने कमेंट किया, “आपको उसका नाम छिपाना नहीं चाहिए था। उनके जैसे लोगों को सार्वजनिक रूप से सामने लाने की जरूरत है। कामकाजी पेशेवरों की ओर से आने वाली ऐसी दयनीय मानसिकता पूरी तरह से अपमानजनक है।”

वायरल पोस्ट का प्रभाव

आशिमा गुलाटी के पोस्ट के बाद, सोशल मीडिया पर महिलाओं के पहनावे, उनके अधिकारों और समाज में उनके स्थान को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। इस बहस ने यह साबित किया है कि आज भी समाज में महिलाओं को उनके पहनावे और आचरण के आधार पर जज किया जाता है, और उन्हें अक्सर अनुचित आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है।

यह मामला केवल एक महिला का नहीं है, बल्कि यह पूरी महिलाओं के साथ होने वाली मानसिकता का हिस्सा है, जिसमें उन्हें उनके पहनावे या कार्यों के आधार पर जज किया जाता है। आशिमा का पोस्ट इस समस्या को उजागर करने का एक महत्वपूर्ण कदम है, और इसने सोशल मीडिया पर महिलाओं के अधिकारों और उनके प्रति समाज की सोच को लेकर एक नई चर्चा को जन्म दिया है।

महिलाओं के पहनावे पर समाज की सोच

आज भी कई समाजों में महिलाओं के पहनावे को लेकर संकुचित मानसिकता देखी जाती है। चाहे वह साड़ी हो, जींस हो या कोई और वस्त्र, महिलाओं के पहनावे को लेकर समाज में विभिन्न प्रकार की धारणाएं बनी हुई हैं। महिलाओं को अक्सर कहा जाता है कि उन्हें क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं, और यह कि उनका पहनावा उनके चरित्र और नैतिकता को दर्शाता है।

यह मानसिकता न केवल महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है, बल्कि यह समाज में पुरुषों के लिए एक अनुचित शक्ति संतुलन भी बनाती है। यह धारणा कि महिलाएं पुरुषों के लिए खुद को सुरक्षित करने के लिए अपने पहनावे को बदलें, पुरुषों के गलत आचरण को सही ठहराने का एक तरीका है।

महिला सुरक्षा और समाज की जिम्मेदारी

आशिमा गुलाटी के पोस्ट ने इस बात को उजागर किया है कि समाज में महिला सुरक्षा केवल कानून और पुलिस की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह समाज की सोच और मानसिकता में बदलाव की भी आवश्यकता है। महिलाओं को सुरक्षित महसूस कराने के लिए समाज को अपनी सोच बदलनी होगी और उन्हें अपने अधिकारों का पूरा सम्मान देना होगा।

यह घटना इस बात का प्रमाण है कि आज भी महिलाओं को उनके पहनावे और आचरण के आधार पर जज किया जाता है, और उन्हें अक्सर अनुचित आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। यह समय है कि हम समाज में इस तरह की सोच के खिलाफ खड़े हों और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाएं।

महिलाओं के अधिकारों और उनके प्रति समाज की सोच 

आशिमा गुलाटी का यह पोस्ट सिर्फ एक सोशल मीडिया पोस्ट नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के अधिकारों और उनके प्रति समाज की सोच को लेकर एक महत्वपूर्ण संदेश है। इस घटना ने साबित कर दिया है कि आज भी समाज में महिलाओं को उनके पहनावे और आचरण के आधार पर जज किया जाता है, और उन्हें अक्सर अनुचित आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है।

आशिमा का साहसिक कदम इस बात का प्रमाण है कि समाज में इस तरह की सोच के खिलाफ आवाज उठाना आवश्यक है। महिलाओं को उनके अधिकारों का पूरा सम्मान मिलना चाहिए, और उन्हें उनके पहनावे या आचरण के आधार पर जज नहीं किया जाना चाहिए। समाज को इस बात का एहसास होना चाहिए कि महिला सुरक्षा केवल कानून की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह समाज की सोच और मानसिकता में बदलाव की भी आवश्यकता है।

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