हिमाचल के मुख्यमंत्री, मंत्री और सीपीएस दो महीने तक नहीं लेंगे वेतन, भाजपा ने राहुल गांधी के खटा-खट मॉडल पर उठाए सवाल

हिमाचल प्रदेश के वित्तीय संकट के बीच मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने नहीं लेंगे दो महीने तक वेतन,


हिमाचल प्रदेश इस समय गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रहा है। ऐसे समय में प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक अभूतपूर्व कदम उठाया है। 29 अगस्त को उन्होंने घोषणा की कि राज्य के मंत्री और सीपीएस (मुख्यमंत्री के सलाहकार) अगले दो महीनों तक वेतन नहीं लेंगे। इसके अलावा, ये अधिकारी यात्रा भत्ता (TA) और महंगाई भत्ता (DA) भी नहीं लेंगे। मुख्यमंत्री सुक्खू के इस फैसले ने जहां कुछ लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है, वहीं अन्य इसे एक साहसिक और जरूरतमंद कदम के रूप में देख रहे हैं।

मुख्यमंत्री का साहसिक निर्णय

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इस कठिन परिस्थिति में अपने मंत्रिमंडल के साथ मिलकर राज्य की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए यह बड़ा फैसला लिया है। उनका कहना है कि यह फैसला राज्य की मौजूदा वित्तीय स्थिति को देखते हुए लिया गया है। उन्होंने सभी विधायकों से भी इसी तरह का कदम उठाने का अनुरोध किया है, ताकि राज्य की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सके।

सुक्खू ने कहा, "हमारे राज्य की अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है और मैं नहीं चाहता कि यह विकास रुके। हमारे राज्य के सामने चुनौतियाँ हैं, लेकिन हम एकजुट होकर इसका सामना करेंगे।" उनके इस फैसले को प्रदेश में एक संवेदनशील और जिम्मेदार नेतृत्व के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।

बीजेपी ने उठाए सवाल

जहां एक ओर मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल का यह फैसला प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर भाजपा ने इस फैसले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। भाजपा के प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा, "राज्य के पास वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं। मुख्यमंत्री के पास अपने, मुख्य सचिव और विधायकों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं। इससे पता चलता है कि 'राहुल गांधी के खटा-खट मॉडल' के कारण राज्य की वित्तीय स्थिति बहुत खराब हो गई है।"

भंडारी का आरोप है कि राहुल गांधी का गारंटी मॉडल और उनकी आर्थिक सोच राज्य के लिए घातक साबित हुई है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस 'रेवड़ी संस्कृति' के खिलाफ देश को चेताया था, वही संस्कृति अब हिमाचल प्रदेश को आर्थिक संकट में धकेल रही है।

भाजपा की पिछली सरकार को ठहराया जिम्मेदार

मुख्यमंत्री सुक्खू ने इस वित्तीय संकट के लिए भाजपा की पिछली सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने लोकलुभावन फैसलों से राज्य के खजाने पर भारी बोझ डाल दिया। मुफ्त पानी और बिजली की योजनाओं ने राज्य के खजाने पर सालाना 1,080 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ डाला।

मुख्यमंत्री का यह भी कहना है कि भाजपा की पिछली सरकार ने जो फैसले लिए, उनसे राज्य की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। इस स्थिति को संभालने के लिए उन्हें और उनके मंत्रिमंडल को ऐसे कड़े फैसले लेने पड़े।

केंद्र सरकार पर लगाए आरोप

मुख्यमंत्री सुक्खू ने राज्य की खस्ताहाल वित्तीय स्थिति के लिए केंद्र सरकार पर भी आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य को मिलने वाले अनुदान को कम कर दिया है, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति और भी बदतर हो गई है।

सुक्खू ने कहा कि साल 2023-24 में राजस्व घाटा अनुदान (RDG) 8,058 करोड़ रुपये था, जिसे चालू वित्त वर्ष के दौरान 1,800 करोड़ रुपये घटाकर 6,258 करोड़ रुपये कर दिया गया। उनका कहना है कि 2025-26 में यह अनुदान और भी कम करके मात्र 3,257 करोड़ रुपये कर दिया जाएगा। इस अनुदान की कटौती से हिमाचल प्रदेश के लिए अपनी जरूरतों को पूरा करना और भी मुश्किल हो जाएगा।

राज्य की जनता के प्रति मुख्यमंत्री का समर्पण

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का यह निर्णय राज्य की जनता के प्रति उनके गहरे समर्पण और जिम्मेदारी को दर्शाता है। राज्य की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए वे खुद और उनके मंत्री वेतन और भत्तों को त्यागने के लिए तैयार हैं। इस कठिन समय में, जब राज्य को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है, मुख्यमंत्री का यह फैसला उन्हें जनता के बीच एक जिम्मेदार और संवेदनशील नेता के रूप में प्रस्तुत करता है।

जनता की प्रतिक्रियाएँ

मुख्यमंत्री के इस फैसले पर जनता की भी मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। कुछ लोग इसे राज्य की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए एक आवश्यक कदम के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे सिर्फ एक राजनीतिक चाल मान रहे हैं। हालांकि, अधिकतर लोग इसे एक साहसिक कदम मान रहे हैं, जो राज्य के आर्थिक संकट को दूर करने में सहायक हो सकता है।

मुख्यमंत्री सुक्खू का यह कदम उन राजनीतिक नेताओं के लिए भी एक संदेश है, जो केवल सत्ता के लिए राजनीति करते हैं। उन्होंने दिखाया है कि राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं है, बल्कि जनता की सेवा और राज्य की भलाई के लिए कड़े फैसले लेने की जिम्मेदारी भी है।

वेतन और भत्ते छोड़कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का यह फैसला राज्य की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने अपने और अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों का वेतन और भत्ते छोड़कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। राज्य की जनता और अन्य नेताओं को इस फैसले से यह सीखना चाहिए कि जब राज्य कठिनाई में हो, तो सभी को एकजुट होकर उसका सामना करना चाहिए। मुख्यमंत्री सुक्खू का यह फैसला न केवल हिमाचल प्रदेश के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण है। 

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