Kullu News: आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को स्थायी बनाने के लिए पीएम को भेजा पत्र
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री मोदी को भेजा मांगपत्र, स्थायी नीति की मांग
कुल्लू: हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका संघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक मांगपत्र भेजा है, जिसमें उन्होंने अपने भविष्य को सुरक्षित करने और स्थायी नीति लागू करने की मांग की है। संघ ने सोमवार को उपायुक्त तोरुल एस रवीश के माध्यम से यह मांगपत्र भेजा। इस पत्र में उन्होंने अपनी समस्याओं और मांगों को विस्तार से रखा है, जो कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के समर्पित सेवा के बावजूद वर्तमान में अधूरी हैं।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की स्थिति
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, जो कि भारत के ग्रामीण और शहरी इलाकों में बच्चों और गर्भवती महिलाओं की देखभाल के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, वर्तमान में अस्थायी कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। यह महिलाएँ विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अपने कार्यस्थल पर कठिनाइयों का सामना करती हैं और फिर भी अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाती हैं। उनके द्वारा की जाने वाली सेवाओं में बच्चों का पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ शामिल हैं। लेकिन, उन्हें स्थायी कर्मचारियों की तरह न तो वेतन मिलता है और न ही किसी प्रकार का सामाजिक सुरक्षा कवच उपलब्ध है।
संघ की महासचिव कृष्णा वर्मा ने कहा, "देश में लगभग 28 लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका हैं, जो कि अपने समर्पित सेवा के बावजूद स्थायी कर्मचारी नहीं हैं। वे अपनी सेवाओं को देते हुए भी वित्तीय असुरक्षा का सामना कर रही हैं।"
उन्होंने आगे बताया कि नई शिक्षा नीति (NEP) के तहत, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को नर्सरी टीचर के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और उन्हें स्थायी कर्मचारी बनाया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी जोर दिया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को सेवाकाल के अंत में कोई सामाजिक सुरक्षा कवच उपलब्ध नहीं होता है, जो कि एक गंभीर समस्या है। इस संदर्भ में, संघ ने यह मांग की है कि सेवानिवृत्ति के समय उन्हें 10 लाख रुपये नकद भुगतान और मासिक पेंशन लाभ देने की नीति बनाई जाए।
नर्सरी टीचर के रूप में प्रशिक्षित करने की मांग
नई शिक्षा नीति के तहत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को नर्सरी टीचर के रूप में प्रशिक्षित करने का सुझाव दिया गया है। यह नीति उनके कर्तव्यों के विस्तार और उन्हें शिक्षण कार्य में शामिल करने का एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। कृष्णा वर्मा ने कहा, "हमारे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पहले से ही छोटे बच्चों की देखभाल और शिक्षा का कार्य कर रहे हैं। इसलिए, उन्हें नर्सरी टीचर के रूप में प्रशिक्षित करना उनके लिए उचित है।"
सेवानिवृत्ति के बाद की सुरक्षा
सेवानिवृत्ति के बाद आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के जीवन की सुरक्षा को लेकर भी संघ ने अपनी चिंता व्यक्त की। वर्तमान में, सेवानिवृत्ति के समय उन्हें किसी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं मिलती, जिससे उनके भविष्य की चिंता बनी रहती है। संघ ने मांग की है कि सरकार को एक ऐसा नीति लागू करनी चाहिए जिसमें सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें 10 लाख रुपये का एकमुश्त भुगतान किया जाए और इसके साथ ही उन्हें मासिक पेंशन का लाभ भी दिया जाए।
संघ की मांगें और सरकार की भूमिका
संघ की मांगें सिर्फ वित्तीय और रोजगार सुरक्षा तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि ये आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की समर्पित सेवा और उनकी भूमिकाओं की मान्यता के लिए भी हैं। सरकार से यह अपेक्षा की जा रही है कि वह इन कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारी का दर्जा देकर उनके जीवन को सुरक्षित करेगी। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका समाज के कमजोर वर्गों के लिए एक महत्वपूर्ण सेवा प्रदान करती हैं, और उनके योगदान को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
मांगपत्र के माध्यम से उठाई गई मुख्य मांगें
- आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को स्थायी कर्मचारी बनाया जाए।
- नई शिक्षा नीति के तहत, उन्हें नर्सरी टीचर के रूप में प्रशिक्षित किया जाए और उनके कार्य को नियमित किया जाए।
- सेवानिवृत्ति के समय, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को 10 लाख रुपये का एकमुश्त भुगतान और मासिक पेंशन का लाभ प्रदान किया जाए।
- आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए सामाजिक सुरक्षा कवच की व्यवस्था की जाए।
संघ के इस मांगपत्र के बाद, अब यह देखना बाकी है कि सरकार किस प्रकार इन मांगों पर विचार करती है।
संघ का समर्थन
इस मामले में विभिन्न सामाजिक संगठनों और समुदायों से भी समर्थन मिल रहा है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की भूमिका को लेकर लोग जागरूक हो रहे हैं और उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। यह एक सकारात्मक संकेत है कि समाज का एक बड़ा वर्ग इन मांगों का समर्थन
कर रहा है, जो कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की स्थिति में सुधार के लिए जरूरी है।
कुल्लू जिले में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि यह क्षेत्र दूर-दराज के पहाड़ी इलाकों में फैला हुआ है, जहाँ परिक्षेत्रीय कठिनाइयाँ अधिक हैं। इन कार्यकर्ताओं को न केवल वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें अपने काम के दौरान भौगोलिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। इसलिए, उनकी मांगें न केवल उचित हैं बल्कि समय की आवश्यकता भी हैं।
आगे की राह
अब यह समय है कि सरकार इन मांगों पर गहन विचार करे और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए
स्थायी समाधान प्रस्तुत करे। यदि उनकी मांगों को समय पर नहीं सुना गया, तो इससे आंगनबाड़ी सेवाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जो कि समाज के सबसे कमजोर वर्गों के लिए हानिकारक हो सकता है।
कुल्लू जिले के आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का यह कदम न केवल उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए बल्कि पूरे समाज की भलाई के लिए है। उनका यह संघर्ष एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा बन गया है, जिसे सरकार और समाज दोनों को गंभीरता से लेना चाहिए।
आशा है कि सरकार इस मामले पर त्वरित और सकारात्मक निर्णय लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की समस्याओं का समाधान करेगी, ताकि वे अपने महत्वपूर्ण कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें और उनके भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।
0 Comments