प्राणीमात्र को जीवित रहने के लिए
रोटी कपड़ा और मकान के साथ-साथ
प्रेम भी चाहिए
किंतु स्त्री को तो मात्र
प्रेम ही चाहिए
स्त्रियां प्रेम ही खाना, पहनना ओढ़ना चाहती हैं
प्रेम में ही दुबकना चाहती है
उनकी देह में
प्रेम की कमी
प्रायः झांकती है
आंखों के नीचे काले घेरे से
धंसे गालो से
निपट उदास चेहरे से
स्त्रियां अक्सर पोषक आहार की नहीं
प्रेम की कमी से 'एनीमिक' हो जाती हैं
हे पुरुष
तुमने स्त्री को समझने के लिए
जाने कितनी किताबे
कितने ग्रंथ पलट दिए
एक बार उससे ही पूछ लेते
उसकी उदासी का कारण
वो पूछने भर से ही
अपनी तमाम उदासियों के खोल से
बाहर निकल सकती थी
तुमसे लिपट रो सकती थी
पर तुम अपने झूठे अहंकार
की पुष्टिकरण में लगे थे
इसलिए स्त्रियां जटिल हो जाती है
क्योकि तुम सरल नहीं हो पाते
कितने मूर्ख हो तुम
स्त्री को संतुष्ट करने के लिए तुम
उसकी देह में फिरते रहे
और वो मन के संकीर्ण कोने में
आजीवन तुम्हारी राह देखती रही
.... कोई किसी को ना पा स्का...
#तृप्त.. ✍🏻
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