डी.पी.रावत।
निरमण्ड,7 नवम्बर।
समय समय पर जातिवाद के कट्टर आलोचक संत कबीर, ज्योतिबा फुले,सावित्री बाई व डॉक्टर भीम राव,आंबेडकर आदि महानुभावों ने जातिप्रथा का घोर विरोध किया है। लगभग सभी बुद्धिजीवियों व महात्माओं ने जातिवाद को देश की एकता एवम् अखण्डता तथा देश में लोकतन्त्र के लिए खतरा बताया है।
महात्मा गांधी ने जातिप्रथा को हिन्दू धर्म का अटूट अंग करार दिया है। पूना पैकेट इसका जीता जगता उदाहरण है।
यूं तो भारत में जाति प्रथा को सन 1950 में संविधान लागू होने के साथ गैर कानूनी घोषित कर दिया है और हिन्दू धर्म के शूद्र वर्ग से संबंधित निम्न जातियां जिनका सदियों से सदियों तक आर्थिक,सामाजिक,राजनीतिक,सामाजिक शोषण हुआ है। एक लम्बे अरसे तक जो सामाजिक अन्याय की शिकार रही हैं।
भारत सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए राजनैतिक,सरकारी नौकरी तथा कॉलेज/विश्वविद्यालयों में आरक्षण दिया है। उनके साथ अत्याचार रोकने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में संसद में पास हुआ। इतना होने के बाद भी देश के किसी न किसी कोने से उनके साथ बलात्कार,मार पीठ,छुआछूत,सार्वजनिक अपमान के मामले हर साल मीडिया में सुर्खियों में रहते हैं।
संविधान के लागू होने के लगभग 75 वर्ष बाद भी देश में जाति प्रथा पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाई है। जहां तक हिमाचल प्रदेश में जातिवाद की बात है तो कभी स्कूली बच्चों और दलित मध्याह्न भोजन कर्मियों के साथ मध्यान्ह भोजन परोसने के वक्त अध्यापकों व सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों द्वारा भेदभाव,कभी स्कूल टूर्नामेंट,कार्यालय स्थलों,देव स्थलों, मन्दिरों, मेलों और देव यात्राओं में अक्सर निम्न जातियां भेदवाद की शिकार होती रही हैं। जिसके ताज़ा उदाहरण कुल्लू ज़िला के बंजार में पलदी फागली, निरमण्ड के सरकारी स्कूल उरटू में आयोजित टूर्नामेंट में और बक्खन स्कूल में मिड डे मील कर्मी,आनी के कुंगश में देवता कोट भझारी की यात्रा में जातीय भेदभाव। जिनमें कुछ मामले रामपुर,आनी व निरमण्ड की लोक मीडिया में सुर्खी में बने और हर रोज़ कितने ही मामले सार्वजनिक नहीं हो पाते।
जाति प्रथा को खत्म करने की दिशा में सरकार ने समाज में रोटी बेटी का सम्बन्ध बनाने के लिए अंतर्जातीय विवाह अनुदान योजना शुरू की है।
जातिवाद के खात्मे के लिए ज्यादातर विद्वानों का मत है कि सरकार कानूनों को सख्ती से लागू करें और सरकारी विभाग और सामाजिक संगठन
जातिवाद की बुराइयों और कानूनी प्रावधानों के प्रचार प्रसार के लिए जन जागरूकता शिविर लगाए जाएं, साहित्यकार,पत्रकार,कवि इस पर समय समय पर लेख लिखते रहें। उनका सबसे मज़बूत तर्क है कि सामान्य वर्ग के बुद्धिजीवी वर्ग ख़ास कर ब्राह्मण समुदाय के व्यक्ति अपने स्तर पर जाति प्रथा की बुराइयों को दूर करने की पहल करें; तभी जाति प्रथा का शामिल नाश सम्भव है।
इस दिशा में लोकल न्यूज़ ऑफ इण्डिया के चीफ़ ब्यूरो हिमाचल प्रदेश गुरुदर्शन शर्मा ने अपने स्तर पर समाज से जातीय भेदभाव,बुराइयां, और छुआछूत को दूर करने की सकारात्मक पहल की है।
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