सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की दलील पर DNA टेस्ट की मांग नहीं की जा सकती। कोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 का हवाला देकर कहा कि वैध विवाह में जन्मा बच्चा पति की वैध संतान माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अगर मान लिया जाए कि एक महिला एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में थी और उससे ही बच्चे का जन्म हुआ, तो भी यह तर्क DNA टेस्ट कराने के लिए पर्याप्त नहीं है। मंगलवार को, शीर्ष अदालत ने पिछले दो दशक से चल रहे केस में यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की। 23 वर्षीय युवा इस मामले में शामिल है। कोर्ट में उसने कहा कि वह अपनी मां के अतिरिक्त मैरिटल अफेयर से जन्मी है। युवक ने कोर्ट से गुजारा भत्ता के लिए अपील की थी कि उसके बायोलॉजिकल पिता का डीएनए टेस्ट कराया जाए।
पितृत्व और वैधता
शीर्ष न्यायालय ने कहा, "पितृत्व और वैधता एक-दूसरे से जुड़े हैं।" अगर बच्चा वैध विवाह के बाद पैदा हुआ है, तो पितृत्व का स्वतः निर्धारण हो जाता है, यानी बायोलॉजिकल पिता की जांच के लिए DNA जैसे किसी भी टेस्ट की आवश्यकता नहीं होती है।कोर्ट ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 कहती है कि वैध विवाह के दौरान या वैवाहिक संबंध समाप्त होने के 280 दिनों के भीतर जन्मा बच्चा पति की वैध संतान मानी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुयान की बेंच ने कहा कि यह धारा बच्चे की वैधता और पितृत्व को लेकर किसी भी अनुचित जांच से बचाता है।कोर्ट ने कहा, "DNA टेस्ट के लिए सिर्फ अफेयर के ग्राउंड पर दावा नहीं किया जा सकता। ऐसे मामलों में निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा अगर DNA टेस्ट की आज्ञा दी जाएगी।'
दंपती के बीच कोई संबंध नहीं है, यह सिद्ध करना असंभव है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब माता-पिता के बीच संपर्क साबित हो जाता है, तो बच्चा वैध माना जाएगा और इसका पितृत्व वैध माता-पिता से ही जुड़ा रहेगा। विवाहित दंपती के बीच कोई संबंध नहीं था, ऐसा सिद्ध करना असंभव होगा। कोर्ट ने कहा कि किसी अन्य व्यक्ति के साथ मां के अफेयर के आधार पर बायोलॉजिकल पिता का दावा करना, पितृत्व के कानूनी सिद्धांत को चुनौती देने के लिए पर्याप्त नहीं है।
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